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xxxxi योगिराज श्री आनंदघनजी महाराज ने जिनस्तवन बावीसी में तात्विक विषयों का जो निरूपण किया है वह गुरुदेव के प्रस्तुत विवेचना नुसार निम्नोक्त प्रकार है :१. पराभक्ति २. अजितपथ यथाख्यात चारित्र ३. अन्तदृष्टि साधना रहस्य ४. सम्प्रदायों में जैन दर्शन का अभाव ५. आत्म समर्पण रहस्य ६. परमात्मा के प्रति अंतरात्मा की पुकार ७. भगवान के विविध नाम रूपों का रहस्य ८. भवान्तर दर्शन और सजोवन मूत्ति के प्रत्यक्ष योग की कामना ९. अनुभव और आगम प्रमाण से मन्दिर और मूर्तिपूजा का रहस्य १०. अनेकान्तवाद तो समन्वयवाद है, संशयवाद नहीं। ११. आध्यात्म रहस्य १२. आत्मज्ञान की कुंजी १३. भक्तिमार्ग को प्रधानता और रहस्य १४. चारित्र का पारमार्थिक रहस्य १५. धर्म का मर्म १६. शान्ति का स्वरूप १७. मन को दुराराध्यता १८. स्वसमय-परसमय/जड़ चेतन भेद विज्ञान/द्रव्य पर्याय भेद रहस्य १९. अन्य सभी लोगों से आदर पाने वाले अठारह दोषों का दूर निवारण २०. विविध आत्म तत्त्व-जिज्ञासा-समाधान २१. षट दर्शन की विशाल समन्वयात्मक दृष्टि निरूपण २२. राजिमती उपालंभ मनोभाव और अनुगामित्व
श्रीमद् राजचंद्र जैसे ज्ञानावतार महापुरुष ने भी आनदघन चौवीसी का अर्थ लिखना प्रारम्भ तो किया था पर वह पूर्ण नहीं हो
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