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________________ xxxviii हो गया था तो वे उनके साथ में कहाँ विचरे ? श्री लल्लु भाई कर्मचंद स्वयं इसी ग्रन्थ की द्वितीयावृत्ति के निवेदन पृ० १९ में (२) 'तप गच्छ मां दीक्षित यथा हता' के उल्लेख के सम्बन्ध में शंकास्पद थे। इसी कारण फुटनोट में “आ माटे वधु तपासनी जरूर जणाय छे'' लिखा है। इसका आशय यही है कि बुद्धिसागरसूरिजी के अपने विचारों को बिना पृथक् करण किये ही लिख दिया करते थे जिस की आलोचना का एक अंश ऊपर उद्धत कर हो चुका हूँ। उपाध्याय यशोविजयजी गुणग्राहक थे। उन्होंने अष्टपदी रचना की और उनका आनंदघनजी के साथ जो प्रेम सम्बन्ध था, वह हमें पूर्णतः मान्य है। इसके अतिरिक्त न तो ज्ञानविमलसूरि कभी आनंदघनजी से मिले और न कोई अन्य तपगच्छ के विद्वानों से आनंदघनजी का सम्पर्क ही हुआ। बुद्धिसागरसूरिजी ने जो भी सारी मनगढन्त बातें एवं संगत असंगत लोकोक्तियाँ को स्थान देकर जीवन चरित्र के प्रति न्याय दृष्टि नहीं रखी है। अध्यात्म, द्रव्याणुयोग की शास्त्र मान्यताएं उनके अधिकार पूर्ण विषय थे, उसी में उन्हें सीमित रहना था। जहाँ उनकी जीवनी की बातें प्रामाणिक रूप से कोई नहीं मिलती वहाँ पाँखें फैला कर उडान करना समीचीन नहीं लगता। · सत्यविजय निर्वाण रास में 'सवालख देश का लाडलं गाँव लिखा है, उसे मालव में मानना देसाईजी की मूल है। सवालख देश नागौर के आस पास का प्रदेश है, अतः वर्तमान लाडणुं ही लाडलं है जो नागोर परगने में है और सवालख देश का यह प्राचीन नगर है। रास में सेठ वीरचंद-वीरमदे के प्रभु शिवराज को "एकोपिणि सहसा समु जे राखे घर नु सूत्र' लिखकर "एक ही हजार जसा" इकलौता पुत्र लिखा है। आनंदघनजी को सत्यविजयजो का लघु बन्धु लिखना ढाई सौ तीन सौ वर्ष बाद की कल्पना सृष्टि है अतः किसी भी प्रकार मान्य नहीं हो सकती। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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