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________________ XXXV की और उनके द्वारा मंडोवर में निर्मापित चैत्य शृंगार - २४ तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा की । उ० पुण्यकलश — अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचंद्रसूरिजी ने ४४ नन्दियों में मुनियों को दीक्षा दी थी जिनमें यह ( कलश ) अंतिम नंदी है । उनका स्वर्गवास सं० १६७० बीलाडा में हुआ था । उससे पूर्व ये दीक्षित हो चुके थे । श्री जिनभद्रसूरि शिष्य परम्परा में समयध्वज ज्ञानमंदिर - गुणशेखर नयरंग शि० धर्ममन्दिर वाचक के ये शिष्य थे । सं० १६८९ में इन्होंने बाड़मेर में साध्वी ज्ञानसिद्धि धनसिद्धि के लिए नवतत्व स्तबक लिखा जो जेन विद्याशाला, अहमदाबाद में है । श्री जिनचंद्रसूरिजी ने सं० १७११ चैत्री पूनम के दिन राजनगर में इनके कई प्रशिष्यों को दीक्षा दी पूर्वनाम दीक्षानाम सकलचंद चारित्रचंद पं० कल्ला पं० चांपा पं० ताल्हा पं० गोदा तिलकचंद सुगुणचंद Jain Educationa International - सं० १७२३ उत्तराध्ययन दीपिका व दशवैकालिक स्तबक लिखा इन्होंने लाभानंद (आनंदघन ) के पास मेड़ता में अष्टसहस्री का अध्ययन किया एवं सं० १७३६ जेसलमेर में ध्यानशतक बालावबोध रचा। जो यति सूर्यमल संग्रह में है । मो० द० देसाई महोदय ने शांतिर्ष जिनहर्ष को जिनचंद्रसूरि की परम्परा में लिखा है वे ६५ वें पाट के नहीं थे क्योंकि इन से पहले ही वे दीक्षित थे और कृतियां भी मिलती है तो जैनरासमाला पृ० ४४ में उनका परिचय देना गलत है, वे क्षेम शाखा के थे । और ६५ वें पाट जिनचंद्रसूरि के आज्ञानुवर्ती थे । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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