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उसमें नहीं है।" पत्र न मिलने पर श्री अगरचंद नाहटा जैसे विद्वान के लिखे प्रमाण को चुनौती नहीं दी जा सकती। आज तक हमारे पचासों ग्रन्थों और छ हजार निबन्ध/लेखों को कोई अप्रमाणित नहीं कर सका। काकाजी श्री अगरचंदजी ने जेसलमेर में उनके पास देखा था। खाली अवतरण दिया है नकल की या नहीं, अब वे रहे नहीं अतः हमारे संग्रह-समुद्र से पता लगाना असंभव है।
श्री पुण्यविजयजी महाराज वहां से बीकानेर पधारे थे और उपाध्याय विनयसागरजी (अब महोपाध्याय) को उनके साथ अभ्यास हेतु भेजा गया था वे उनके साथ काफी रहे थे। मुनिश्री ने वह पत्र विनयसागरजी को दे दिया था जो उन्होंने अपने संग्रह-कोटा में रखा था। अभी उनके पयूषण पर पधारने पर वह पत्र उनके संग्रह में ज्ञात हुआ, पर अभी खोजने पर नहीं मिला तो भविष्य में खोज कर मिलने पर प्रकाश डाला जा सकेगा। पर यहाँ पर इस अवतरण पर विस्तृत प्रकाश डालने का प्रयत्न करता हूँ।
श्री जिनचंद्रसूरि-इन्हें सूरत चौमासे में मेड़ता से पुण्यकलशोपाध्याय, जयरंग, चारित्रचंद आदि ने पत्र भेजा था। ये गणधर चोपड़ा आसकरण-सुपियारदेवी के पुत्र थे इनका नाम हेमराज था सं० १७०७ वैशाख शुक्ल ३ को श्री जिनरत्नसूरि ने जेसलमेर में दीक्षित कर हर्षलाभ नाम दिया था। सं० १७११ में भादव बदि १० को आचार्य पद स्थापना नाहटा जयमल तेजसी की माता कस्तूर बाई कृत महोत्सव पूर्वक राजनगर में हुई, जिनचंदसूरि नाम प्रसिद्ध हुआ। सं० १७६३ सूरत में स्वर्गवास हुआ। अतः यह पत्र सं० १७११ में या उसके पश्चात् किस संवत् मिती में दिया था, मिलने पर ज्ञात होगा। इन्होंने अपने शासन काल में ३९ नंदियों में प्रचुर दीक्षाएं दी थी। एवं साध्वाचार में शिथिलता न आ सके इसके लिए नियम प्रसारित किए थे जो हमारे संग्रह में है। जोधपुर के शाह मनोहरदास के संघ सह शत्रुजय यात्रा
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