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________________ xxxi अधिक जानने के लिए आनंदघन ग्रन्थावली में श्री अगरचंदजी नाहटा का प्रासंगिक वक्तव्य देखना चाहिए। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी ५ से “आनन्दधन का रहस्यवाद'' नामक साध्वी श्री सुदर्शनाश्री जी का शोध प्रबन्ध प्रकाशित हुआ है जिसमें द्वितीय अध्याय "व्यक्तित्व एवं कृतित्व में लिखा है कि श्री अगरचन्द नाहटा का ( आनन्दघन ग्रन्थावली पृ० २१-२२ में ) कथन है कि आनन्दघन मूलतः खरतरगच्छ में दीक्षित हुए और इसके लिए उनके द्वारा तीन प्रमाण दिये गए हैं। प्रथम तर्क यह दिया गया है कि खरतरगच्छ के समर्थ आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी ने बुद्धिसागरसूरिजी को कहा था कि वे मूलतः खरतरगच्छ में दीक्षित हुए हैं। लेकिन यह तर्क ठोस नहीं, क्योंकि इसके लिए आचार्य कृपाचन्द्रसूरि ने कोई प्रामाणिक आधार प्रस्तुत नहीं किया है। आचार्य जिनकृपाचन्द्रसूरि द्वारा आचार्य बुद्धिसागरसूरि को बताये जाने के बावजूद स्वयं आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने लिखा है कि आनन्दघन तपागच्छ में दीक्षित हुए थे और उनका नाम लाभानंद था। इसके सम्बन्ध में मेरा यह कहना है कि जब कृपाचन्दसूरिजी से यह ज्ञात हो गया कि आनन्दघनजी का उपाश्रय और स्तूप भी मेड़ता में है और आनन्दघनजी का उपाश्रय खरतरगच्छ का है एवं उनकी परम्परा के यतिजन हाल मौजूद हैं तो यह बुद्धिसागरसूरिजी का कर्तव्य था कि वे मेड़ता में खोज कराते कृपाचन्द्रसूरि तो कीतिरत्नसूरि शाखा के परम्परागत यति समुदाय में से थे जिनके सभी यतिजनों की जानकारी थी, अवश्य ही वे क्रियोद्धार करने के पश्चात् वर्षों बीकानेर ( राजस्थान ) नहीं गये। वे जैनागम न्याय, ज्योतिष आदि सभी विषयों के प्रकाण्ड विद्वान थे पर बुद्धिसागरसूरिजी की भाँति शिलालेख और इतिहास शोध का कार्य उन्होंने नहीं किया था। साधारणतया जानकारी दे दी इसे अमान्यकर अपने पूर्वाग्रह वश अपनी धारणानुसार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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