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९. आनंदघन चौवीसी प्रमोदायुक्त प्रभुदास बेचरदास पारेख द्वि० वृत्ति
सन् १९५७ पृ० ४८० प्र० श्री जैन श्रेयस्कर मंडल म्हेसाणा १०. आनंदघन चौवीसी विवे-मोतीचंद गिरधर कापड़िया सन् १९७०.
मूल्य ८ रुपये प्र. श्री महावीर जैन विद्यालय बंबई। इसमें
ज्ञानविमलसूरि के टबा का आधुनिक भाषा में विवेचन है। ११. आनंदघन एक अध्ययन डा०-कुमारपाल देसाइ प्र० सन् १९८०
प्र० आदर्श प्रकाशन जुम्मा मस्जिद सामे अहमदाबाद ३८०००१ १२. प्रशान्त वाहिता (पूर्वाद्ध) द्वितीया वृत्ति, विवेचनकार श्री विजय
भवन रत्नसूरीश्वर पृ० ५२४ इस पुस्तक में आनंदघनजी के तपागच्छ या खरतरगच्छ में दीक्षा लेने के विवाद से सर्वथा अलग रखा है।
इनके अतिरिक्त मुनि संतबालजी ने आनंदघन चौवीसी का विवेचन भी लिखा जो प्रकाशित नहीं हुआ। श्री गब्बूलालजी का गुजराती अनुवाद मंगलजी उधवजो ने सं० २००० में प्रकाशित किया। जीवनी के संबन्ध में धीरजलाल टोकरसी शाह ने बाल ग्रन्थावली में तथा वसन्तलाल कान्तिलाल ने स्वतन्त्र पुस्तिका लिखी थी।
डा. भगवानदास ने दूसरे स्तवन का विवेचन "दिव्य जिन मार्ग दर्शन' एवं तीसरे का विवेचन “प्रभु सेवानी प्रथम भूमिका" नाम रखा
और दोनों व परिशिष्ट में श्रीमद्जी का साथ में देकर ३३२ पृष्ठों में प्रकाशित किया है।
आगमप्रज्ञ मुनिराज श्री जम्बूविजयजी महाराज ने आनंदघन चौवीसी के मूल पाठ शुद्धि के लिए पाँच-सात प्रतियों से पाठान्तर लेकर प्रकाशन प्रारंभ किया और उसका प्रफ भी हमारे पास भेजा था पर न मालूम वह कार्य उन्होंने अधूरा ही क्यों छोड़ दिया, अन्यथा शुद्ध और प्राचीन पाठ का निर्णय प्रकाश में आता। इस विषय में
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