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________________ xxii खरतरगच्छ वस्तुतः कोई सम्प्रदायवाद नहीं किन्तु वह एक आचार। क्रान्ति थी जिसने जैनशासन को तिरोहित होने से बचा लिया था। शताब्दियों से फेलते हुए शिथिलाचार को हटाने के भागोरथ प्रयत्न में श्री हरिभद्रसूरिजी के चालू किये प्रयत्न को पर्याप्त बल दे कर सफल बनाया। सम्बोधप्रकरणादि ग्रन्थों से उनकी हार्दिक पीड़ा चारुतया आकलन की जा सकती है, श्री वद्ध मानसूरिजी के नेतृत्व में आचार्य जिनेश्वर और बुद्धिसागर ने गुजरात की राजधानी पाटण में दुर्लभराज की सभा में शास्त्रार्थ द्वारा चत्यवासियों के गढ की नींवे हिलाकर धराशायी कर दिया। उनमें से त्याग वराग्य सम्पन्न प्रतिभाओं को उपसम्पदा देकर तथा क्षत्रिय, माहेश्वर, ब्राह्मणादि जातियों को भगवान महावीर के अहिंसा और अपरिग्रह मार्ग में प्रतिबोध देकर सम्मिलित किया। ओसवाल, श्रीमाल, महत्तियाण, प्राग्वाट आदि जातियों की श्रीवृद्धि की। उन उदारचेता महान् आचार्यों ने विशुद्ध जिनोपासना को परिपाटी के लिए विधि-चत्यों का प्रचार किया । फलस्वरूप मन्दिरों में वेश्यानृत्य, पान चर्वण, रात्रि में होने वाले पूजा विधान तथा मठाधीश प्रथा दूर कर सुविहित वस्ती मार्ग का प्रचार किया। श्री अभयदेवसूरि प्रभृति आचार्यों द्वारा आगम साहित्य पर नवाङ्गबृत्तिरचना तथा अन्य दिग्गज विद्वानों द्वारा सभी विषय के सर्वांगीण साहित्य निर्माण द्वारा जो शासन सेवा की वह बेजोड़ थी। वर्तमान गच्छों में सर्व प्राचीन होने से उसकी साहित्य साधना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अन्य गच्छों में भी महापुरुष उत्पन्न हुए जिससे शासन रूपी वृक्ष की सभी शाखाएं सरस फलप्रद हुई। आचार धारा भी निम्नगा नदियों की भाँति देश की राजनतिक, सामाजिक परिस्थियों से प्रभावित होकर आचार शथिल्य का प्रवेश होने पर समय-समय पर क्रियोद्धार द्वारा परिष्कार हुआ। मथेरण-महात्मा जाति का उद्गम उसी का परिणाम था। मुस्लिम संस्कृति से प्रभावित अमूतिपूजक संप्रदाय का प्रचार प्रसार भी उसी काल प्रभाव का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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