________________
xvili
बहुत बिचरे, शिष्य परिवार बढा और ८२ वर्ष की आयु पूर्णकर १७५६ पोष सुदि १२ शनिवार सिद्ध योग में स्वर्गवास हुआ। इसके एक मास बाद माघ सुदि १२ को रास की रचना हुई अतः इसे ही प्रामाणिक माना गया है। श्री मोतीचंद गिरधरलाल कापड़िया के मतानुसार सत्यविजयजी ने सं० १७२९ (जिनहर्षकृत रास पृ.११४ ) में क्रियोद्धार पन्यास पद के पश्चात् ही किया होगा। और क्रियोद्धार के पूर्व आनंदघनजी के साथ वनवास में साधना करना नहीं जंचता श्री आनंदघनजी का देहविलय सं० १७३१ में होना सिद्ध है और वह भी मेड़ता में हुआ था और पन्यास श्री सादड़ी से गुजरात चले गए थे। ऐसी स्थिति में पन्यास सत्यविजय और आचार्य ज्ञानविमलसूरि के श्रीमद् आनंदघनजी से मिलने और साथ में चिरकाल रहने की बात काल्पनिक सिद्ध होती है।
आनंदघनजी के जीवनचरित्र और पद पर दूसरा बड़ा कार्य किया है मोतीचंद गिरधरलाल कापड़िया ने। उन्होंने श्री बुद्धिसागरजी के महान् ग्रन्थ पर इस प्रकार लिखा है :
'इतिहास ना अभ्यासीए आग्रही प्रकृति न राखतां जेम बने तेम खुल्ला दिल थी काम लेवं, कोई बात ना पक्ष, मत के संप्रदाय मां खेंची जवा प्रयत्न करवो नहीं अने वधारे आधारभूत हकीकत प्राप्त थतां पोतानी जातने सुधारणा माटे खुल्ली ( open ) राखवी आवा नियम थी ऐतिहासिक बाबत मां शोधखोल चलाववा मां आवे तो एकंदरे सारग्राही बुद्धिवाला माणसो बहुलाभकारी घणो नवीन प्रकाश नाखी शके मारु मानवु छे अने ते नियम विसारी देवा थी ऐतिहासिक चर्चा मां बहु नुकशान थयु छे अने आयंदे पण थशे एवो भय रहे छे, अत्यार सूधी मां आनंदघनजी ना चरित्र सम्बन्धी मोटा पाया उपर प्रयत्न मुनि श्री बुद्धिसागरजीए करेलो जोवा मां आवे छे, परन्तु कमनसीबे तेओए पृथक्करण दृष्टिए अने वैज्ञानिक ऐतिहासिक रीति नो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org