SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तमान चतुर्विंशति जिन स्तुतयः ता० २४-११-६० ऋषभ जिन स्तुति १ प्रीति अनुष्ठाने प्रेम ऋषभ - पद जोड़ी प्रभु-छवि चित्त झलक्ये पराभक्ति पथ दोड़ी ; प्रभु - आज्ञा तत्पर दृष्टि मोह गढ़ तोड़ी, जीत क्षोभ असंगे सहजानंद रंग रोळी ; ॥१॥ अजित जिन स्तुति २ दिशि पूर्व अजीत-पथ चित्प्रकाश-उद्योत, दृग - दृश्य विछोड़ी जोड़ी द्रष्टा - पोत ; जगी अंतः ज्योति त्यां दृष्टि-अंधता-मोत, लगी ज्ञान निष्ठा ज्यां सहजानंदघन स्रोत ; ॥२१॥ संभव जिन स्तुति ३ परिग्रह - मूर्छा त्यां भय वली दंभाचार, संताज्ञा - अवज्ञा सन्मारग तिरस्कार ; टले अपात्रता ए अनंत कषाय प्रकार, संभव प्रभु शरणे सहजानंदघन सार ; ॥३॥ अभिनंदन स्तुति ४ थइ संत कृपा ज्यां अभिनंदन श्रुति - घोध, जागे सुमति त्यां प्रगटे चिद-जड़-बोध ; ध्येय-ध्यान एकता रूप ध्याति अविरोध, खुले दृष्टि दर्शन सहजानंदघन शोध ; ॥४॥ १६८ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy