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________________ xvi ही था । सत्यविजय पन्थास लाडलु ( ? नु ) के दूगड़ वीरचंद के इकलौते पुत्र थे यह जिनहर्ष कृत सत्यविजय निर्वाण रास से सिद्ध है । अतः न तो वे दोनों भाई-भाई थे और न एक स्थान में उनकी जन्मभूमि ही थी । मेड़ता चातुर्मास में नगरसेठ के आने के पश्चात व्याख्यान प्रारंभ किया जाता था । विलम्ब हो जाने से समय पर आनंदघनजी द्वारा व्याख्यान प्रारंभ करने पर नगर सेठ द्वारा उपालंभ देने पर वे सब कुछ छोड़ कर जंगल में चले जाने की घटना में सभी एकमत हैं । किन्तु रायचंद अजाणी ने अवधूत आनंदघन चौवीसी में उनके देह विलय स्थान को गुजरात ना मेड़ता लिखा है । मुनि श्रोरत्नसेन विजयजी पृ-१७ में गुजरात प्रदेश के गाँव में उपर्युक्त नगरसेठ के आगमन से पूर्व व्याख्यान प्रारंभ की घटना गुजरात के गाँव में लिखी है । रायचंद अजाणी ने ज्ञानसारजी के "आशय आनंदघन तणो" दोहे को ज्ञानविमलसूरि कृत एवं रत्नसेनविजयजी ने इस दोहे को पृ १४ में उपाध्याय यशोविजयजी कृत लिखा है, पर उपसंहार में उन्होंने श्री ज्ञानसार जी महाराज का ही लिखा है । आनंदघनजी की जीवनी की घटनाओं में उन्होंने भी बुद्धिसागरसूरिजी का ही अनुधावन किया है। ९ दिल्ली के शाहजादे का बीकानेर आना, वृद्ध यति की मश्करी और अश्वारूढ शाहजादे को "बादशाह का बेटा खड़ा रहे" "कह कर आनंदघनजी द्वारा स्तंभित कर देने की बात भी अप्रामाणिक है । इस के विषय में वयोवृद्ध कोठारी जमनालालजी द्वारा मैंने सुना था कि महाराजा गंगासिंहजी के समय में जब वे नाबालिग थे तो तालव्होट साहब ने दूसरे चिदानंदजी को उपालम्भ और अपशब्द कहे कि आप महाराजा को उल्टा सीधा सिखाते हैं । इसी पर यह घटना हुई थी । यह चित्र और घटना का आनंदघनजी से कोई संबन्ध नहीं है । मुगल इतिहास में किसी भी शाहजादे का दिल्ली से बीकानेर आना प्रमाणित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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