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________________ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन-२ ( राग शांति जिन एक मुझ वीनती ) पास जिन ताहरा रूप हैं, मुज प्रतिभास किम होय रे । तुझ मुझ सत्ता एकता, अचल विमल अकल जोय रे ॥ पास० ॥१॥ तुझ प्रवचन वचन पक्ष थी, निश्चय भेद न कोय रे। व्यवहारे लखि देखिए, भेद प्रतिभेद बहु लोय रे ॥ पास० ॥२॥ बंधन मोक्ष नहि निश्चये, व्यवहारे भज दोय रे। अखंड अनादि अविचल कदा, नित्य अबाधित सोय रे ।। पास० ॥३॥ अन्वय हेतु वितरेक थी, आंतरो तुझ मुझ रूप रे। अंतर मेटवा कारणे, आत्म स्वरूप अनूपरे ॥ पास० ॥४॥ आतमता परमात्मता, शुद्ध नय भेद न एक रे। अवर आरोपित धर्म छे, तेहना भेद अनेक रे॥ पास०॥५॥ धरमी धरम थी एकता, तेह मुझ रूप अभेद रे। एक सत्ता लख एकता, कहे ते मूढमति खेद रे ॥ पास ० ॥६॥ आतम धर्म ने अनुसरी, रमे जे आतम राम रे। 'आनंदघन' पदवी लहे, परम आतम तस नाम रे ॥ पास० ॥७॥ २ पास = पाश्वनाथ भगवान । ताहरा = तुम्हारे। प्रतिभास = प्रकर्ष आभास, साक्षात्कार । अकल = निराकार, अकलनीय । विवहारे = व्यवहारे, व्यवहारनय । लोय = जीवलोक में । मोव= मोक्ष । अबाधित = बाधारहित । वितरक = व्यतिरेक, भेद, अन्तर, व्यतिरेक हेतु । आंतरो= अन्तर। अवर = अन्य, दूसरे । तेहना = उसके । तस = उसका । १५४ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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