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________________ xiv ने काई?" लिखा मिला। लोक कथा का हार्द एक है और नायक भिन्न । ( देखिये हमारी-ज्ञानसार ग्रन्थावली) ४ जोधपुर नरेश के पधारने पर ज्वरग्रस्त आनंदघनजी ने वार्ता-उपदेशहेतु अपना ज्वर कपड़े में उतार रखा। थर-थर धूजोते कपड़े का रहस्य राजा ने ज्ञात किया। यही बात महाराजा सूरतसिंह और ज्ञानसारजी के लिए प्रसिद्ध है ( ज्ञानसार ग्रन्थावली पृ० ३९) इसी से मिलती जुलती बात सुलतान महमद के जाने पर ज्वरग्रस्त श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा ज्वर को पानी में उतारने और उबलने लगने की उपलब्ध है ( देखिए-शासन प्रभावक जिनप्रभसूरि और उनका साहित्य पृ० ७०) ५ मेड़ता में श्रेष्ठि पुत्री को मृत पति के साथ चिता प्रवेश करते रोकने के लिए उपदेश में "ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे" स्तवन निर्मित होना। चौवीसी के २२ स्तवन निर्माण को यशोविजयजी और ज्ञानविमलसूरि द्वारा छिपकर सुनना और २ स्तवन न बन सकना तथा चित्र निर्माणकर गुफा में उपाध्यायश्री द्वारा ज्ञानविमलसूरि को लिखाना अप्रामाणिक है। कोई आधार नहीं। ज्ञानविमलसूरिजी के टब्बे के उपर लिखी ज्ञानसारजी की समीक्षा ही पर्याप्त है। ६ जोधपुर महाराजा के धन की आवश्यकता पड़ने पर मेड़ताकी कोटयाधिपति सेठानी के यहाँ सिपाहियों द्वारा घेरा डालने और आनंदघनजी को प्रार्थना करने पर उन्होंने अक्षय लब्धिसे एक-एक तरह का सिक्का रखवाया और उस में से अखूट धन से कितने ही घड़े भर दिये। इन सब दन्तकथाओं का विस्तृत लेखन हुआ है। महाजन वंश मुक्तावली पृ० २८ में बाँठियों के इतिहास में हरखचंद की संतान हरखावत कहलाए। मेड़ता नगर में बादशाह खाजे की दरगाह जाते आया। द्रव्य की आवश्यकता होने से हरखावत को बुलाकर ५२ सिक्के के ६ लाख रुपये मांगे चिन्ताग्नस्त सेठ आनंदघनजी मुनि पास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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