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रुपों के पुण्य प्रभाव से घटनेवाली घटनाएं इसी तरह स्वतः होती है । ऐसी घटनाएं अनेक प्रचलित हैं जो सम्बन्धित महापुरुषों का नाम विस्मृत होकर किसी अन्य अभीष्ट महापुरुष के नाम से प्रचलित हो जाती है । आप देखेंगे हेमचन्द्राचार्य, जिनदत्तसूरि, जिनप्रभसूरि, जिन चंद्रसूरि, हीरविजयसूरिजी के नाम से चढी हुई एक दूसरे से संलग्न घटना विपर्यय है ।
श्री बुद्धिसागरसरिजी महाराज आदि के द्वारा लिखित श्रीमद् आनंदघनजी महाराज के जीवनचरित्र में ऐसी कई घटनाएं हैं वास्तव में अनायास घटित चमत्कारों के बनिस्पत इच्छापूर्वक घटित चमत्कार आत्म लब्धि का अपब्यय और संसारवर्द्धक स्टेशन बढाने बाते होते हैं। यहां श्रीमद् के संबन्धित चमत्कारों की समीक्षा अभीष्ट है ।
१ श्रीमद् के ध्यान की उच्च दशा में गुफावास करने पर सिंह ब्याघ्र, सर्पादि पड़े रहते थे जिनकी गर्जना से साधारण व्यक्ति का हृदय फट जाय ऐसी गुफाओं में साधना करते थे । इस तपोबल और आत्म लब्धि का हम शतश: समर्थन करते हैं ।
२ मित्र योगी द्वारा प्रेषित स्वर्णरस सिद्धि को फेंक देना और उसके द्वारा तिरस्कार पूर्ण चैलेंज देने पर श्रीमद् द्वारा संकल्प सिद्धि से चट्टान पर प्रश्रवण कर उसे स्वर्णमय बना देना - लोककथा प्रसिद्ध है, समीक्षा आवश्यक नहीं ।
३ जोधपुर के महाराजा की दुहागिन रानी द्वारा महाराजा की कृपा दृष्टि हेतु यंत्र मांगने पर "राजाराणी दो मिले उसमें आनंदघन कुं क्या ?" लिखकर दिये कागज के यंत्र को धारण करने पर वह प्रीति पात्र हो गई । इसी प्रकार की कथा श्रीमद् ज्ञानसारजी को उदयपुर महाराजा द्वारा दुहागिन रानी का यंत्र खोलकर देखने पर "राजा राणी सुं राजी हुवै तो नाराणे ने काई राजा राणी सुरूस तो नाराणे
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