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वीर प्रभुना वचनो ने अनुसारे अप्रमत्त पणे आत्मा ना गुणो प्रकट करवा प्रयत्न करो, श्री विजयप्रभसूरिजी श्रीमद् आनंदघनजी नी सरलता देखी बहु आनंद पाम्या। आनंदघनजी नी त्याग-वैराग्य दशा जोई ने श्री विजयप्रभसूरि पासे रहेला साधुओ खुश थया। श्रीमद्आनंदघनजी त्यांथी अन्यत्र विहार करी गया।
इसी प्रकार आनंदधनजी की चर्या, लाभानंद से आनंदघन नामप्रसिद्धि तथा उनके सन्बन्ध में लोगों की धारणा तथा उपाध्याय श्री यशोविजयजी का आबू की गुफाओं में विचरते समय जा कर मिलने की विस्तृत बातें लिखते हुए उपाध्यायजी कृत अष्टपदो लिखी है। इनमें प्रमाण भूत अष्टपदी सही है वाकी अनुभूति की बातें आत्मानुभवी योगिजन ही बता सकते है। आगे चलकर लिखा है कि आनंदघनजी ने भी उपाध्यायजी के गुणों की अष्टपदी रची है बीजापुर के शा० सुरचंद सरूपचन्द्र ने उन्हें कहा। ऐसी कृति प्राप्त हुए बिना कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
श्री विजयप्रभसूरि जी आदि कब मेड़ता गये ? उन्हें आनंदघनजी मिले इसके शरुप रास आदि ग्रंथों में लिखे प्रमाण बिना केवल कल्पना सृष्टि ही कही जायगी आचार्यश्री ने इसे सबल पुरावा लिखा है पर पट्टावली जनश्रुतियों में घटना का रूपान्तर हो जाता है और कथानायक का नाम विस्मृत होकर हरेक बात अपने इष्ट आचार्य के संबन्ध में जुड़ जाती है। चमत्कार की बातों में भी यही समस्या ऐतिहासिक परिशीलन करने वालों के समक्ष उपस्थित रहती ही है।
साधारण जनता चमत्कार के प्रति विशेष दिलचस्पी रखती है। चमत्कार आश्चर्यजनक घटना को कहते हैं। महापुरुष चमत्कार के अधिष्ठान हैं, पर वे इच्छा पूर्वक चमत्कार दिखाते नहीं वे तो स्वतः होते हैं । अगर होनहार होता है तो उन्हें स्फुरणा होती है और उसके प्रभाव से वह कार्य हो जाता है। तीर्थङ्करों के चौतीस अतिशय तथा युगप्रधान
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