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________________ श्री अर जिन स्तवन ( राग-परजियो मार, ऋषभ नो वंश रयणयर, ए देशी ) धरम परम अरनाथनो, किम जाणं भगवन्त रे। स्व पर समय समझाविये, महिमावंत महन्त रे ॥ धरम० ॥१॥ शुद्धातम अनुभव सदा, स्व समय एह विलास रे। परबडि छाँहडि जे पड़े, ते पर समय निवास रे॥ धरम० ॥२॥ तारा नखत ग्रह चंदनी, ज्योति दिनेश मझार रे। दरसण ज्ञान चरण थकी, सकति निजातम धार रे ॥ धरम० ॥३॥ भारी पीलो चीकणो, कनक अनेक तरंग रे। परजाय दृष्टि न दीजिये, एकज कनक अभंग रे ॥ धरम० ॥४॥ दरसण ज्ञान चरण थकी, अलख सरूप अनेक रे। निरविकल्प रस पीजिये, सुद्ध निरंजन एक रे॥ धरम० ॥५॥ परमारथ पथ जे कहै, ते रंजे इक तन्त रे। व्यवहारे लखि जे रहै, तेना भेद अनन्त रे॥ धरम० ॥६॥ व्यवहारे लख दोहिलो, कांइ न आवै हाथ रे। शुद्ध नय थापन सेवतां, नवि रहै दुविधा साथ रे ॥ धरम० ॥७॥ एक पखी लखि प्रीतनी, तुम साथे जगनाथ रे। किरपा करीनै राखज्यो, चरण तलें गहि हाथ रे॥ धरम० ॥८॥ चक्री धरम तीरथ तणा, तीरथ फल तत सार रे। तीरथ सेवे ते लहै, आनन्दघन' निरधार रे॥ धरम० ॥९॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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