SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्संगी- अहो ! आश्चर्य है कि आप जवाँमर्द होकर भी एक नामर्द को जीतने में नामर्दी दिखा रहे हैं। अच्छा, जनाब ! यदि आप अपने साले को वास्तव में अपने आधीन बनाना चाहते हों, तो मैं एक युक्ति बतावूं । अपने आपनी अर्द्धांगिनी के नाम की आदि में जो 'कु' जोड़ रखा है, उसे हटाकर 'सु' को स्थापित कर दीजिये और फिर देखिये कि आपकी श्रीमतीजी अपने भैया को किस तरह अपने पति की सेवा में लगाती है । क्योंकि मन को समझाने का काम सुमति का है, कुमति का नहीं । अतः सर्व प्रथम आप अपनी मति को कुमति से सुमति बनाइये और फिर देखिये कि मन वश होता है या नहीं । क्योंकि मन आखिर है तो नपुंसक न ? ७. मुमुक्षु - यद्यपि मैंने व्याकरण शास्त्रों से जाना कि मन नपुंसक लिंगी है पर पर नपुंसक होते हुए भी सभी पुरुषों को सन्मार्ग से उन्मार्ग की ओर ढकेल देता है । दूसरों की बात छोड़ो, खास व्याकरण शास्त्र रचने वाले खुद पाणिनी ने मन को नपुंसक समझकर उसे अपनी प्रिया के शील- रक्षा के लिये उनके पास भेजा, पर उन जैसे विद्वान का मन भी बजाय शील- रक्षा के, स्त्री में ही रमने लग गया । उसे ऐसा व्यभिचारी देखकर खुद पाणिनी भी हताश हो गये। जबकि मन को नपुंसक ठहराने वाले पाणिनी भी मन को जीत न सके ? तब दूसरे सामान्य व्यक्तियों का क्या कहना ? अतः फलितार्थ में यही सिद्ध हुआ कि नामर्द होने पर भी मन स्त्रियों के साथ मिलकर ऐसा समर्थ हो जाता है कि बड़े-बड़े जवाँमर्दों को भी पछाड़ देता है । यद्यपि मर्द लोग दूसरी बातों जैसे कि कनकावलि - रत्नावलि, एकrafe सिंहनिःक्रीडित और आतापना आदि अघोर तप तपने में रेचक, पूरक, कुम्भक आदि कठोर योग साधन में, शेर सर्प आदि के दमन में तैर करके बड़े-बड़े जलाशयों को पार करने में, निराधार बाँस पर खेलने में, तलवार की धार पर नाचने में, भूत-पिशाच आदि [ १३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy