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________________ श्री शान्ति जिन स्तवन ( राग - मल्हार - चतुर चौमासो पडकमी - ए देशी ) शान्ति जिन एक मुझ विनती, सुणो त्रिभुवन राय रे । शान्ति सरूप किम जाणिये, कहो मन किम परखाय रे || शांति० ॥ १ ॥ धन्य तू, आतम जेहने, एहवो, प्रश्न अवकास रे । धीरज मन धरि सांभलो, कहूँ शान्ति प्रतिभास रे || शांति० ॥ २॥ भाव अविशुद्ध सविशुद्ध जे, कह्या जिनवर देव रे । तिम अवितत्थ सहे, प्रथम ए शान्ति पद सेव रें || शांति० ॥३॥ आगमधर गुरु समकिती, क्रिया सम्वर सार रे । सम्प्रदायी अवंचक सदा, सुचि अनुभवाधार रे || शांति० ॥४॥ शुद्ध आलम्बन आदर, तजि अवर जंजाल रे । तामसी वृत्ति सवि परिहरि, भजे सात्विकी साल रे || शांति० ॥ ५ ॥ फल विसंवाद जेहमां नहीं, शब्द ते अर्थ सम्बन्धि रे । सकल नयवाद व्यापी रह्यो, ते शिव साधन संधि रे || शांति० ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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