________________
श्री शीतल जिन स्तवन ( राग-धन्याश्री गौडी-गुणह विसाला मंगलिकमाला-ए देशी )
शीतल जिनपति ललित त्रिभंगी, विविध भंगि मन मोहे रे। करुणा कोमलता तीक्षणता, उदासीनता सोहे रे ॥ शी० ॥१॥
सर्व जीव हित करणी करुणा, कर्म विदारण तीक्षण रे। हानादान रहित परणामी, उदासीनता वीक्षण रे॥ शी० ॥२॥
परदुख छेदन इच्छा करुणा, तीक्षण पर दुख रीझे रे। उदासीनता उभय विलक्षण, एक ठामि किम सीझे रे ॥ शी० ॥३॥
अभय दान ते मलक्षय करुणा, तीक्षणता गुण भावे रे। प्रेरण विण कृत उदासीनता, इम विरोध मति नावें रे॥ शी० ॥४॥
शक्ति व्यक्ती त्रिभुवन प्रभुता, निम्र थता सयोगे रे। योगी भोगी वक्ता मौनी, अनुपयोगि उपयोगे रे ॥ शी० ॥५॥
इत्यादिक बहुभंग त्रिभंगी, चमत्कार चित देती रे।। अचरज कारी चित्र विचित्रा, आनन्दघन' पद लेंती रे। शी० ॥६॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org