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________________ निकलता है, वैसे ही घट में ब्रह्माग्नि के सुलगने पर सूखे गीले कर्म छिलके सर्वांग प्रज्ज्वलित होकर उसमें से निरन्तर धुंआ निकलता हुआ चैतन्य प्रकाश में नजर आता है, जिसके प्रतीक रूप में प्रभु-मूर्ति के सामने धूप-पूजा का अभिनय किया जाता है। जैसे छिलके उतर जाने पर अक्षत-चावल फिर से बोने पर भी नहीं उगते, वे ज्यों के त्यों अक्षत ही बने रहते हैं, जैसे ही कर्म-छिलके जलकर झड़ जाने पर चैतन्य-मूर्ति आत्मा जन्म-मरण रहित ज्यों की त्यों अक्षत ही बनी रहती है-इस अक्षत स्वभाव का भान कराने के लिए उसके प्रतीक रूप में प्रभु-मूर्ति के सामने अक्षत-पूजा का अभिनय किया जाता है। जैसे मन्दिर में नैवेद्य समर्पण करने पर भी प्रभु-मूर्ति उसे नहीं खाती, वैसे ही घट-मंदिर में नैवेद्य-खाद्य सामग्री समर्पण करने पर भी चैतन्य. मूर्ति आतमा उसे नहीं खाती-पीती, क्योंकि आत्मा अनाहारी है, इसकी खुराक जड़ नहीं हो सकता-इस अनाहारी स्वभाव का भान कराने के लिये इसके प्रतीक-रुप में प्रभु-मूर्ति के सामने नैवेद्य-पूजा का अभिनय किया जाता है। जैसे मन्दिरों में फल चढ़ाने पर भी प्रभु-मूर्ति की उनमें आत्म-बुद्धि नहीं है, वैसे ही धट मन्दिर में कर्म-फल रूप शाता-अशाता के उदय आने पर भी आत्म-देव को उनमें आत्म-बुद्धि न रखकर सदैव हर्ष-शोक रहित समरस रहना चाहिए। इस कर्मफल त्याग के प्रतीक रूप में प्रभु-मूर्ति के आगे फल-पूजा का अभिनय किया जाता है। इस तरह अन्तमुख उपयोग द्वारा स्वरूप-लक्ष को साधते हुए उपरोक्त आठों ही प्रकार की पूजन विधि के सतत अभ्यास से देहाध्यास छूटकर आत्म-साक्षात्कार होता है, और आत्म-साक्षात्कार होने पर क्रमशः भव-दुख रूप आति उतरने लगती है। जैसे दोनों रोशनदान, खिड़की, दरवाजा और चारदिवारी-इन पाँचो ही आवरणों से उत्पन्न कैदी की आति-आकुलता क्रमशः आवरणों [ ४३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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