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________________ सकता है और उसका यही कर्तव्य है। आत्म-साक्षात्कार के लिए शरीर को आसनस्थ रख कर मन, वाणी और दृष्टि को स्थिर करके चित्त-वृत्ति प्रवाह को बाहर से लौटाकर उसे ज्योंहि घट-मन्दिर में प्रवेशित कराते हैं त्योंहि अन्तरंग में घण्टा, शंख, नौबत आदि के रूप में अनेक प्रकार की दिव्य-अनाहत-ध्वनि सुनाई पड़ती है, जिसके प्रतीक रूप में मन्दिरों के आद्य-विभाग में घण्टा आदि दिखाये गये हैं। जैसे भगवान के दर्शन के लिये मन्दिर में प्रकाश अनिवार्य है, वैसे ही घटमन्दिर में भी आत्म-देव के दर्शन के लिये चैतन्य प्रकाश अनिवार्य है, जिसके प्रतीक रूप में मन्दिरों में प्रभु-मूर्ति के सामने दीप-पूजा का अभिनय किया जाता है। जैसे सूर्य की किरणें पड़ते ही सूर्य विकाशी कमल खिल उठते हैं, वैसे ही घट-मन्दिर में आत्म सूर्य की चैतन्य रोशनी कामण-शरीरस्थ सहस्र-दल कमल आदि पर फैलते ही वे खिलने लगते हैं, जिसके प्रतीक रूप में प्रभु मूर्ति के सामने पुष्प पूजा का अभिनय किया जाता है। जैसे बाहरी खिले हुये कमलों में से सुगन्ध फैलती है, वैसे ही भीतरीय कमलों के खिलने पर दिव्य सुगन्ध फैलने लगती है, जिसके प्रतीक रूप में प्रभु मूर्ति के सामने चन्दन आदि गन्ध पूजा का अभिनय किया जाता है । जैसे सूर्य का आतप पहुँचते हो हिमालय के शिखरों पर से बर्फ पिघल कर (१) जल प्रवाह के रूप में बहने लगती है, वैसे ही आत्म सूर्य का ध्यान आतप पहुंचते ही सहस्र दल कमल की कणिका के उपरितन विभाग में रही हुई बर्फ सदृश मेरु शिखर वत् घट-मेरु शिखरस्थ सिद्ध-शिला की प्रतीक पाण्डु-शिला पिघल कर (२) प्रवाहित होती हुई चैतन्यमूर्ति का अभिषेक करती है, जिस रस को सुधारस कहते हैं, उसी के प्रतीक रूप में मन्दिरों में प्रभु मूर्ति के उपर जल-पूजा द्वारा अभिषेक का अभिनय किया जाता है। वह सुधारस अत्यन्त मधुर होता है अतः अभिषेक जल में क्वचित् मिसरी आदि पञ्चामृत मिलाने की प्रथा है। जैसे सूखी-गीली लकड़ियाँ जलने पर उनमें से धुंआ ४२] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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