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________________ ९. श्री सुविधिनाथ स्तवनम् अनुभव और आगम प्रमाण से मन्दिर और मूर्तिपूजा का रहस्य : एकदा सन्त आनन्दघनजी के सान्निध्य में जिज्ञासु-मण्डल बैठा था। जिसमें से कितनेक जिज्ञासु मन्दिर और मूर्तिपूजा को उचित समझते थे, जब कि कितनेक अनुचित। प्रसंग वश उक्त विषय की ही उस मण्डल में चर्चा छिड़ गई। तब उस मण्डल के एक मध्यस्थ ने सबको शान्त और सावधान करते हुये सभी के समाधान के हेतु विनम्र होकर बाबाजी के साथ इस विषय में चर्चा करना शुरु किया। जिज्ञासु-भगवन् । मन्दिर निर्माण और मूर्तिपूजा के पीछे क्या उद्देश्य है ? कृपया आप आगम और अनुभव प्रमाण से उसके रहस्य पर प्रकाश डालिये। आनन्दघनजी-मन्दिर एक आध्यात्मिक अभिनय प्रधान प्रयोगशाला है। जिसका उद्देश्य घट मन्दिर में रहे हुये आत्मदेव का साक्षास्कार कराना है। उसमें मूर्तिपूजा के द्वारा मूर्तिमान को पूज्य बनाने वाले चित्त-शुद्धि पूर्वक के अन्तरंग अनुभव-क्रम का अभिनय बताया जाता है। क्योंकि अभिनय पूर्वक शिक्षा प्रचार जितना ठोस और हृदयंगम होता है उतना कोरी व्याख्यान-बाजी से नहीं हो पाता। अतएव ज्ञानी लोग इन आध्यात्मिक-साधनालयों को परापूर्व से महत्व देते चले आ रहे हैं, जो कि सर्वथा प्रामाणिक और अनुकरणीय है। अनुभव-प्रमाण से उसका रहस्य इस प्रकार है : यह मानव शरीर एक जिनालय के ही समान है । जैसे जिनालय केवल योग का ही साधन है, भोग का नहीं, वैसे ही मानव शरीर भी केवल योग का साधन है। जैसे मन, वचन और शरीर-रूप तीनों ही योग एवं अशुद्ध-उपयोग को जीत कर जिनेश्वर भगवान जिनालय में पूज्य-पद पर आरूढ़ हैं, वैसे ही मानव-देह स्थित आत्मा भी तीनों ही योग एवं अशुद्ध-उपयोग को जीत कर पूज्य परमात्म-पद पर आरुढ़ हो [४१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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