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________________ के हट जाने पर मिट जाती है, वैसे ही मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञानावरण-इन पाँचों ही आवरणों से उत्पन्न घट-मन्दिर के कैदी आत्म-देव की आत्ति क्रमशः पाँचों ही आवरणों के हट जाने पर उतर जाती है-मिट जाती है ; जिसके प्रतीक रूप में प्रभु-मूर्ति के सामने निरावरण पञ्चज्ञानज्योति सूचक पाँच दिया जलाकर आरती उतारने का अभिनय किया जाता है। जैसे रोशनदान आदि पाँच आवरण सापेक्ष सूर्य के प्रकाश-भेद, सूर्य की निरावरण दशा में न रह कर केवल अभेद ज्योति ही जगमगाने लगती है, वैसे ही मतिज्ञानावरण आदि पाँच आवरण सापेक्ष आत्मा के ज्ञान-प्रकाश-भेद आत्मा की निरावरण दशा में न रहकर, केवल अभेद आत्म-ज्योति जगमगाने लगती है जिसे सम्पूर्ण केवलज्ञान कहते हैं। जो मं-अहम्-मम को गलाने वाला मंगल स्वरूप होने के कारण उसके प्रतीक रूप में प्रभु-मूर्ति के सामने मंगल-दीपक का अभिनय किया जाता है। ___जैसे लट्ट स्थित बिजली की आकृति लट्ट के ही आकार में परिणत होती है, वैसे ही मानवदेह-रूप लट्ट स्थित निरावरण सहजात्मस्वरूप केवल चैतन्यमूर्ति की आकृति भी केवल मानव शरीराकार मात्र परिणत होती है, पर शरीर के उपर के वस्त्र आभूषण और शस्त्र आदि के आकार में वह परिणत नहीं होती। इसीलिए जिनालयों में जिनेश्वर-दशा प्रधान केवल चैतन्य-मूर्ति के ही प्रतीक-रूप में वस्त्रालंकार और शस्त्र आदि से रहित मात्र अनुभव-परिमाण पुरुषाकार प्रभु-मूर्ति ही अभीष्ट है, अतः उस दशा में ही उसमें पूज्य-बुद्धि प्रतिष्ठित करके उपरोक्त पूजन-क्रम का अभिनय किया जाता है। जिन्हें अकृत्रिम ज्ञान नेत्र और परिपूर्ण-आत्मसुख प्रकट हो चुके हैं, उन्हें कृत्रिम बाह्यनेत्र और कौपीन, कँदौरा आदि लगाना तो केवल जिनेश्वर दशा का उपहास करना मात्र है। जिनालयों में प्रतिष्ठित केवल चैतन्य अनुभव-परिमाण पुरुषाकार जिनप्रतिमावत् घट मन्दिर में प्रतिष्ठित केवल चैतन्य-अनुभव-परिमित पुरुषाकार निज-प्रतिमा का सर्वाङ्ग ४४ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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