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________________ खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची २५ जिनहंससूरि ___ आप सेत्रावा निवासी चोपड़ा मेघराज के पुत्र और श्री जिनसमुद्रसूरि जी की बहिन कमलादेवी की कोख से उत्पन्न हुए थे। सं० १५२४ में इनका जन्म हुआ था और धनराज इनका नाम था । सं० १५३५ में विक्रमपुर में दीक्षित हुए, दीक्षा नाम धर्मरंग था। सं० १५५५ अहमदाबाद में आपकी आचार्य पद पर स्थापना हुई। जिसका उत्सव बीकानेर में सं० १५५६ जेष्ठ सुदि ६ को बोहिथरा कर्मसी मंत्री ने पीरोजी लाख रुपया व्यय करके किया था। श्रीशान्तिसागराचार्य ने आपको सूरिमंत्र प्रदान किया था। सं० १५८२ में पाटण नगर में तीन दिन के अनशनपूर्वक आप स्वर्गवासी हुए। सं० १५६२ में सागरचंद्र सूरि परंपरा के देवतिलक को उपाध्याय पद दिया था। श्रीजिनहंससूरि जी के शिष्य सुप्रसिद्ध गीतार्थ पुण्यसागर महोपाध्याय . उदयसिंह की भार्या उत्तम देवी के पुत्र थे। ये सं० १६५० तक विद्यमान थे, विशेष जानने के लिए हमारी युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि पुस्तक देखना चाहिए। सं० १५६० में आपने सारंगकुमार जो ११ वर्षीय थे, दीक्षित किया,, जिन्हें आपने स्वयं सं० १५८२ में पाटण में आचार्य पद भाद्रपद बदि १३ को देकर अपने पद पर स्थापित किया था। जिनमाणिक्यसूरि आपका जन्म सं० १५४६ में कूकड़ चोपड़ा साह राउलदेव की धर्म पत्नी रयणादे की कोख से हुआ था। जन्म नाम सारंग था। सं० १५६० में बीकानेर में ग्यारह वर्ष की अल्पायु में श्री जिनहंससूरि जी ने इन्हें दीक्षित किया था और सं० १५८२ माघ सुदि ५ को बालाहिक देवराज कृत नन्दी महोत्सव द्वारा आपका पट्टाभिषेक हुआ। सं० १६०४ में खेतसर के रीहड श्रीवंत-श्रियादे के पुत्र सुलतान कुमार को दीक्षा दी, सुमतिधीर नाम रखा जो इनके पट्टधर अकबर प्रतिबोधक श्रीजिनचंद्रसूरि जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री जिनमाणिक्यसूरि जी देरावर-दादा जिनकुशलसूरि जी की यात्राकर लौटते हुए मार्ग में पिपासा परिषह में अनशन पूर्वक स्वर्गस्थ हुए। इन्होंने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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