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________________ २४ खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची क्षल्लक थे । सारे भारत में खरतर गच्छ के हजारों साधु विचरण करते थे जिनका इतिवृत्त अप्राप्त है। श्री जिनराजसूरि जी के शिष्य जयसागर जी को आपने ही उपाध्याय पद दिया था एवं कीर्तिराज को भी आपने उपाध्याय पद और बाद में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया था। कीर्तिरत्नसूरि जी के ५१ शिष्य हुए। श्रीभावप्रभाचार्य को भी आपने ही आचार्य पद दिया था। सं० १५१४ मार्गशिर बदि २ को कुंभलमेर में आपका स्वर्गवास हुआ। जिनचन्द्रसूरि ___ इनका जन्म सं० १४८७ में जेसलमेर में चम्म गोत्रीय शाह बच्छराज के यहां धर्मपत्नी बाल्हादेबी की कोख से हुआ। सं० १४६२ में दीक्षा हुई और कनकध्वज नाम रखा गया। सं० १५१५ ज्येष्ठ बदि २ को कुंभलमेर में श्री कीतिरत्नसूरि जी ने इन्हें आचार्य पद देकर श्री जिनभद्रसूरि के पद पर स्थापित किया। इन्होंने धर्मरत्नसूरि आदि अनेक मुनियों को आचार्य, उपाध्यायादि पद दिए । सं० १५३० में जेसलमेर में स्वर्गवासी हुए। श्री सोमध्वज के शिष्य क्षेमराज जो छाजहड़ लीला, पत्नी लीला देवी के पुत्र थे, को सं० १५१६ में श्री जिनचंद्रसूरि ने दीक्षा दी थी। क्षेमराजोपाध्याय के शिष्य दयातिलक बच्छा साह-बाह्लादेवी के पुत्र थे। जिनसमुद्रसूरि ये बाहड़मेर निवासी पारख देको साह के पुत्र थे। इनकी माता का नाम देवल देवी था । सं० १५०६ में जन्म और सं० १५२१ मुंजपुर में दीक्षा संपन्न हुई। कुलवर्द्धन नाम रखा गया। सं० १५३३ माघ सुदि १३ को जेसलमेर में श्री जिनचंद्रसूरि जी ने स्वयं इन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। सं० १५५५ मिगसर बदि १४ को अहमदाबाद में स्वर्गवासी हुए। इन्होंने सागरचंद्रसूरि परम्परा के देवतिलकोपाध्याय को सं० १५४१ में दीक्षा दी थी जो भणशाली करमचंद-सोहण देवी के पुत्र थे और जो सं० १५३३ में जन्में थे। सं० १५६२ में जिनहंसूरि ने इनको उपाध्याय पद दिया था और सं० १६०३ मार्ग सु० ५ को स्वर्गवासी हुए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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