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खरतरगच्छ दीक्षा गन्दी सूची जिनराजसूरि (प्रथम) ___इनका दीक्षा नाम राजमेरु मुनि था । सं० १४३२ फाल्गुन कृष्ण ६ को श्री लोकहिताचार्य जी ने पाटण में जिनोदयसू रिजी के पट्ट पर अभिषिक्त किया। बोथरा तेजपाल (बच्छावतों के पूर्वज) के सुपुत्र कडुआ, धरणा ने बड़े समारोह पूर्वक पट्टोत्सव किया । इन्होंने सुवर्णप्रभ, भुवनरत्न और सागरचंद्र को आचार्य पद दिया। देउलपुर के छाजहड़ धीणिग के पुत्र रामणकुमार को सं० १४६१ में दीक्षित कर कीत्तिसागर नाम रखा; जो आगे चलकर सुप्रसिद्ध जिनभद्रसूरि हुए। श्री जिनराजसूरि जी का सं० १४६१ में देवलवाड़ा में स्वर्गवास हुआ। उनके पट्ट पर श्री जिनवर्द्धनसूरि को स्थापित किया जो १४ वर्ष तक गच्छनायक रहे, बाद में १४७५ में देवी प्रकोप से जिनभद्ररि को स्थापित किया। आबू खरतरवसही के निर्माता दरडा वंशीय मंडलिक के भ्राता जयसागर जी आपके शिष्य थे।
सागर चंद्रसूरि के पट्टधर भावप्रभसूरि माल्हू शाखा के लूणिग कुल में सव्वड साह की भार्या राजलदे के पुत्र थे।
जिनभद्रसूरि
ये देउलपुर निवासी छाजहड़ धीणिग की धर्मपत्नी खेतलदेवी की कोख से सं० १४८६ चै० सुदि ६ को जन्मे। इनका जन्म नाम रामणकुमार था । सं० १४६१ में श्रीजिन राजसूरि के पास दीक्षित हुए। सं० १४७५ में इन्हें (कीत्तिसागर मुनि को) श्री सांगरचन्द्रसूरि जी ने आचार्य पद देकर श्री जिनभद्रसूरि नाम प्रसिद्ध किया। ... विज्ञप्तित्रिवेणी के अनुसार इनका चातुर्मास सं० १४८४ में अणहिलपुर पाटण में था। उस समय इसके साथ पं० पुण्यमूर्ति, मतिविशाल गणि, वा० लब्धिविशाल गणि, वा० रत्नमूति गणि, पं० मतिराज गणि, वा० मुनिराज गणि, पं० सिद्धान्तरुचि गणि, पं० सहजशील मुनि, पं० पद्ममेरु मुनि, पं० सुमतिसेन गणि, विवेकतिलक मुनि, क्रियातिलक मुनि, भानुप्रभ मुनि आदि थे। इन सबकी दीक्षा कब हुई? इसका उल्लेख नहीं मिलता। मलिक वाहनपुर से जयसागरोपाध्याय ने विज्ञप्तित्रिवेणी पत्र भेजा, तदनुसार उनके साथ मेघराज गणि, सत्यरुचि गणि, पं० मतिशील गणि, हेमकुंजर मुनि, पं० समयकुंजर मुनि, कुलकेशर मुनि, अजितकेशरि मुनि, स्थिरसंयम मुनि, रत्नचन्द्र
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