SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची एक ही नंदि में ६४ साधु दीक्षित किए थे ! १२ मुनियों को उपाध्याय पद से अलंकृत किया था । श्री जिन माणिक्यसूरिजी ने जो अनेक दीक्षाएं दी उनके नामादि पूरे नहीं मिले । कवि कनक, विनयसोम, जयसोम, कनकसोम, अमरमाणिक्य, साधुकीर्ति, विनयसमुद्र, भुवनधीर, कल्याणधीर, क्षेमरंग, सुमतिधीर आदि नाम पाये जाते हैं। इनमें अमर माणिक्य संभवतः सं० १५८२ के बाद जब जिनमाणिक्यसूरि आचार्य पदारूढ़ हुए उसी के आसपास दीक्षित हुए हों । श्रीपुण्यसागर महोपाध्याय तो जिनहंस सूरि द्वारा दीक्षित होने से सबसे बड़े थे। जयसोम, कनकसोमतो सम्राट अकबर के दरबार में गये थे । साधुकीति उपाध्याय सुती वस्तिग-खोमल के पुत्र थे और सं० १६४६ जालोर में स्वर्गवासी हुए थे । विनयसमुद्र के शिष्य ने जिनचंद्रसूरि जी के पास दीक्षा ली थी; जिनका नाम हर्ष विशाल था और जिनकी नन्दी नं० १६ है । गुणरत्न (नंदि नं० १३ ) शिष्य उपाध्याय ज्ञानसमुद्र (नंदि नं० ३४ ), उनके शिष्य ज्ञानराज के शिष्य लब्धोदय थे जिनकी पद्मिनी चोपाई आदि कई रचनाएं उपलब्ध हैं । भुवनधीर भी जिन माणिक्यसूरि के शिष्य थे । कल्याणधीर भी माणिक्यसूरि के शिष्य थे जिनके शिष्य कल्याणलाभ थे (नंदि नं २९ ), कमलकति ( नं० ४० ) और धर्मरत्न ( नं० १३ में) दीक्षित हैं । श्रोजिन माणिक्यसूरि क े शिष्य क्षेमरंग के शिष्य विनयप्रमोद का ( नं० १८ ) और उनके शिष्य महिमसेन (नंदि नं ० ४२ ) थे । यह ज्ञातव्य है कि जिनमाणिक्यसूरि जी के सभी शिष्य जिनराजसूरि जी के शिष्य जिनरत्नसूरि और जिनरंगसूरि के अलग होने पर जिन रंगसूरि शाखा में आज्ञानुवर्ती रहे थे। ऊपर वर्णित हस्तदीक्षितों के लिए नहीं, यह बात स्वकीय शिष्यों के लिए है । 1 समयरंग और नयरंग श्री जिनमाणिक्यसूरि द्वारा दीक्षित होने चाहिए, क्योंकि 'रंग' नंदि जिनचंद्रसूरिजी की ४४ नंदियों में नहीं है । सं० १६१८ की नयरंग कृत सतरहभेदी पूजा मिलती है और १६२१-२४-२५ की अन्यकृतियां भी संप्राप्त हैं । युगप्रधान जिनचंद्रसूरि ये खेतसर के रीहङ गोत्रीय श्रीवंत श्रियादेवी के पुत्र थे । ये सं० १५६५ चैत्र कृ० १२ को जन्मे और सं० १६०४ में श्रीजिन माणिक्यसूरि दीक्षित हुए। सुमतिधीर नाम रखा गया । सं० १६१२ में जैसलमेर के रावल मालदेव कारित नन्दी महोत्सव पूर्वक खरतर बेगड़ शाखा के आचार्य श्री गुणप्रभसूरि जी द्वारा भाद्रपद शु० ६ को सूरिमंत्र प्राप्त कर श्री जिनमाणिक्यसूरि जी के पद पर प्रतिष्ठित हुए। उन दिनों गच्छ में शिथिलाचार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy