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परतर-गच्छ दीक्षा नन्दी सूची
इनका जन्म नाम अम्बड़ था। सं० १२५८ में जिनपतिसूरि जी द्वारा पीरप्रभ नाम से खेड़ नगर में दीक्षित हुए। सूरि पद सं० १२७८ मा० सु०६ में हुआ, पट्टधर बने । सं० १२७८ माघ सुदि ६ को जावालिपुर में ७ शिष्यों को दीक्षाएं दी
यशकलश गणि, विनयरुचि गणि, बुद्धिसागर गणि, रत्नकीर्ति गणि, तत्त्वप्रभ गणि, रत्नप्रभ गणि, अमरकीर्ति गणि।
सं० १२७६ जेठ सुदि १२ को श्रीमालपुर में निम्नोक्त दीक्षाएं दी, इनमें साधुओं का नामान्त पद एक बिजय और दूसरा प्रभ था और साध्वियों का 'माला' था, नाम निम्नोक्त हैं :
श्रीविजय, हेमप्रभ, तिलकप्रभ, विवेकप्रभ साधु तथा चारित्रमाला गणिनी, ज्ञानमाला, और सत्यमाला गणिनी-तीन साध्वियाँ।
सं० १२७६ माघ सुदि ५ को जावालिपुर में हुई दीक्षाएं___ अर्हद्दत गणि, विवेकश्री गणिनी, शीलमाला गणिनी, चन्द्रमाला गणिनी, विनयमाला गणिनी।
सं० १२८० माघ सुदि १२ को पुनः श्रीमालपुर में प्रतिष्ठा और ध्वजारोपणादि के पश्चात् फाल्गुन कृष्ण १ के दिन ४ दीक्षाएं सम्पन्न हुई। यतः
कुमुदचन्द्र, कनकचन्द्र तथा पूर्णश्री गणिनी व हेमश्री गणिनी।
सं० १२८१ वैसाख सुदि ५ को जाबालिपुर में निम्नोक्त ४ साधु और साध्वियों की दीक्षाएं हुईं :-विजयकीति, उदयकीति, गुणसागर, परमानन्द साधु और कमलश्री, कुमुद श्री साध्वियाँ ।
सं० १२८३ माघ बदि ६ को बाड़मेर में सूरप्रभ को उपाध्याय पद भौर मंगलमति गणिनी को प्रवत्तिनी पद दिया गया। वीरकलश गणि, नन्दिवर्द्धन गणि और विजयवर्द्धन गणि को दीक्षा दी।
सं० १२८४ में बीजापुर पधारकर श्रीवासुपूज्य स्वामी की स्थापना की और आषाढ़ सुदि २ अमृतकीर्ति गणि, सिद्धिकीति गणि एवं चारित्रसुन्दरी, धर्मसुन्दरी गणिनी को दीक्षा दी।
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