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१. मती, २. चूला, ३, प्रभा, ४, देवी, ५. लब्धि, ६. सिद्धि ७. वती।
प्रवर्तिनी के नाम भी इसी प्रकार हैं। महत्तरा के नामों में उत्तरपद "श्री" रखना चाहिए ।
जिनकल्पी का नामान्त पद 'सेन' इतना विशेष समझना चाहिए। आगे ब्राह्मण एवं क्षत्रियों के नामों के पद भी बतलाये हैं। विशेष जानने के लिए मूल ग्रन्थ का ८० वां उदय (पृ० ३८६-३८९) दृष्टव्य है।
खरतरगच्छ में इन नामान्त पदों को वर्तमान में 'नांदि' या 'नंदी' कहते हैं और इनकी संख्या ८४ (चौरासी) बतलायो है जबकि ऊपर नाम ६८ ही दिये हैं। विशेष खोज करने पर हमें बीकानेर में खरतरगच्छीय श्रीपूज्य श्री जिनचारित्रसूरिजी के दफ्तर एवं अनेक फुटकर पत्रों में ऐसी ८४ नामान्त पद सूची उपलब्ध हुई, पर उन सब में पुनरुक्ति रूप में पाये नामों को बाद देने पर जब ७८ रह गये तो खरतरगच्छ गुर्वावलो आदि में प्रयुक्त नामों का अन्वेषण करने पर जो नये नाम उपलब्ध हुए उन सब को अक्षरानुक्रम सूची यहां प्रस्तुत को जा रही है१. अमृत २. पाकर ३. आनन्द ४. इन्द्र ५. उदय ६. कमल ७. कल्याण ८. कलश. ९. कल्लोन १०. कीर्ति ११. कुमार १२. कुशल १३. कुंजर १४. गणि १५. चन्द्र १६. चारित्र १७, चित्र १८. जय १९. णाग २०. तिलक २१. दर्शन २२. दत्त २३. देव २४. धर्म २५. ध्वज २६. धीर २७. निधि २८. निधान २९. निवास ३०. नंदन ३१. नन्दि ३२. पद्म ३३. पति ३४. पल ३५. प्रिय ३६. प्रबोध ३७. प्रमोद ३८. प्रधान ३९. प्रभ ४०. भद्र ४१ भक्त ४२. भक्ति ४३. भूषण ४४. भण्डार ४५. माणिक्य ४६. मुनि ४७. मूर्ति ४८. मेरु
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