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क्षमाछत्तीसी कुलवालुओ साधु कहातो, कीधो क्रोध अपार जी ॥ कोणिक नी गणिका वश पड़ियो, रडवडियो संसार जी ॥आ०॥५॥ सोवनकार करी अति वेदन, वाघ्रशुं वींटियुं शीश जी ॥ मेतारज ऋषि मुक्ति पोहोतो, उपशम एह जगीश जी ॥आ०॥६॥ कुरुड़ बुरुड़ बे साधु कहाता, रह्या कुणाला खाल जी ॥ क्रोध करी ते कुगति पहोता, जनम गमायो आलजी आ०॥७॥ कर्म खपावी मुगते पहोता, खंधकसूरिना शिष्य जी । पालक पापीये घाणी पील्या, नाणी मनमां रीशजी आ०॥६॥ अध्यकारी नारी अचुकी, त्रोड्या पीयुशु नेह जी ॥ बब्बरकुल सह्यां दुःख बहुलां, क्रोध तणा फल एहजी ||आ०॥॥ वाघणे सर्व शरीर विलुयु, ततक्षण छोड्यां प्राण जी ॥ साधु सूकोशल शिवसूख पाम्यां, एह क्षमा गुण जाणजोआ०॥१०॥ कुण चण्डाल कहीजे बिहुमें, निरति नहीं कहे देवजी ॥ ऋषि चंडाल कहीजे वड़तो, टालो वेढनी टेवजी ॥ आ० ॥११॥ सातमी नरक गयो ते ब्रह्मदत्त, काढी ब्राह्मण आँखजी ॥ क्रोध तणां फल कडुआं जाणी, राग द्वेषद्यो नांखजी ।।आ०॥१२॥ खंधक ऋषिनी खाल उतारी, सह्यो परिसह जेणजी ॥ गरभवासना दुःखथी छूटयो, सबल क्षमा गुण तेणजी ॥आ०॥१३॥ क्रोध करी खंधक आचारिज, हुओ अग्निकुमार जी ॥ दंडक नृपनो देश प्रजाल्यो, भमशे भवह मझारजी ।। आ० ॥१४॥ चंडरौद्र आचारिज चलतां, मस्तक दीध प्रहारजो ॥ ... क्षमा करंतां केवल पाम्यो, नव दीक्षित अणगारजी ॥आ० ॥१५॥
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