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________________ सर्प जब बाहर निकला तो बिल के निकट ही उन्हें खड़े देखकर अत्यन्त क्रोधित हो उनके पैर में जोर से डस दिया, लेकिन इस कार्य से उन पर कोई प्रतिक्रिया न होती देख आश्चर्य से स्तम्भित हो गया, तब भगवान ने उसे सम्बोधन किया है चण्डकौशिक ! बुज्झ बुज्झ ! अपने पूर्व जन्म का स्मरण कर और आत्म बोध को पाकर शान्त एवं स्थिर हो जा ! इस प्रकार बोधयुक्त आशी दि वचन सुनकर वह शांत हो गया तथा विचार मग्न होने पर जातिस्मरण ज्ञान द्वारा उसे अपने पूर्वभव का अनुभव हुआ, तब वह प्रसन्न होकर अपना मुँह को बिल में डाल कर अनशन ब्रत (खाने पीने चलने फिरने का त्याग रूप) ग्रहण कर शरीर से स्थिर हो गया तथा आत्म चिन्तन-ध्यान में तल्लीन हो गया। उसके शरीर को चीट्टियों ने घेर कर अपना आहार प्रारम्भ कर दिया तथा तीन दिनों में उसका शरीर चलनी की तरह हो गया, लेकिन वह अपने ध्यान से विचलित नहीं हुआ, आयु के अन्त में देह को छोड़कर आठवें स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। पूर्व साधन के बल से हिंसक पशु, सत् संग से तुरत आत्म-बोध प्राप्त कर अनशन ग्रहण कर अपनी गति सुधार ली और मोक्ष की ओर अग्रसर हो गया। तब अपने मनुष्य होकर, विवेक, विचार शक्ति वाले मनुष्य कहलाकर भी गडरप्रवाहीभेड़ों की भांति ही अपने लोकरंजन विचार एवं आचार को अपनाए रहेगें, तो आत्मोन्नति-मोक्ष के पथ पर कैसे अग्रसर हो सकेंगे ? जिस प्रकार भगवान प्रतिकूल उपसर्ग करने वालों के प्रति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003812
Book TitleAtma Bodh Sara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavindrasagar
PublisherKavindrasagar
Publication Year1975
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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