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________________ गणधर गौतम : परिशीलन इस देशना में प्रभु ने पुण्य के फल, पाप के फल और अन्य अनेक उपकारी प्रश्नों का प्रतिपादन किया। बारह पर्षदा भगवान् को इस वाणी को एकाग्रचित होकर हृदय के कटोरे में भावभक्ति पूर्वक झेल/ ग्रहण कर रही थी । भगवान् की अन्तिम धर्मपर्षदा में अनेक विशिष्ट एवं सम्मान्य व्यक्ति, काशी-कौशल देश के नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी-अठारह राजा भी उपस्थित थे। इस प्रकार सोलह प्रहर पर्यन्त अखण्ड देशना देते-देते कार्तिक वदि अमावस्या की मध्य रात्रि के बाद स्वाति नक्षत्र के समय वह विषम क्षण आ पहुँचा। समय का परिपाक पूर्ण हुआ और त्रिभुवन स्वामी श्रमण भगवान् महावीर बिहोत्तर वर्ष के आयुष्य का बन्धन पूर्ण कर, महानिर्वाण को प्राप्त कर, सिद्ध, बुद्ध, पारंगत, निराकार, निरंजन बन गये । भगवान् इस दिन सर्वदा के लिये मर्त्य न रहकर समस्त शुभ-शुद्ध भावना के पुंज रूप में अमर्त्य अमर बन गए। ज्ञान सूर्य विलुप्त हो गया। पर्षदा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त भगवान् को दीन/अनाथ भाव से अश्रुसिक्त अंजलि अर्पण कर अन्तिम नमन करती रही । पावापुरी की भूमि पवित्र हो गई । अमावस्या की रात्रि धर्मपर्व बन गई । उस रात्रि में जन समूह ने दीपक जलाकर निर्वाण कल्याणक का बहुमान किया। यही दीपक पंक्ति दीपावली त्यौहार के रूप में प्रसिद्ध हो गई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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