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________________ प्रकाशकीय इस अवसर्पिणी काल के चरम/चौबीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर का शासन आज भी अविच्छिन्न रूप से चल रहा है। २५ शताब्दी पूर्व दिया हुआ भगवान महावीर का अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त का त्रिवेणी रूप उपदेश आज भी विश्वशान्ति के लिये उपादेय है। उनका “जीओ और जीने दो' का शाश्वत सिद्धान्त अाज भो जन-मन का हार बना हुमा है । रत्नत्रयी की सम्यक् आराधना / अनुष्ठान आज भी आत्म-शुद्धि के लिये उतना ही प्रशस्त है जितना उस समय था। भगवान अपनी वाणी को अर्थ रूप में ही प्रकट करते हैं । उस अर्थ/वाणी को सूत्र रूप में ग्रथित करने का, प्रचारप्रसार करने का वैशिष्ट्यपूर्ण कार्य उनके गणधर ही सम्पादित करते हैं । द्वादशांगी की रचना कर प्रभु-वाणो को अमरत्व प्रदान करते हैं। भगवान महावीर की वाणी को अमरत्व प्रदान करने का और अजस्र प्रवाहित करने | रखने का प्रशस्ततम कार्य प्रभु के प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने ही सम्पादित किया है। गौतम गौत्रीय इन्द्रभूति प्रसिद्ध नाम गौतम स्वामी के नाम से आज जैन समाज के प्राबालवृद्ध जनों के कण्ठहार बने हुए हैं । उषा काल में सभी लोग चाहे श्रमण-श्रमणो हो या उपासक-उपासिका हो, “स गौतमो यच्छतु वांछितं मे", मनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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