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गणधर गौतम : परिशीलन
कर आस-पास के प्रदेश में हाहाकार मचा रखा था । अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव का निर्देश प्राप्त कर त्रिपृष्ठ रथ में बैठकर, सारथि को साथ लेकर सिंह को गुफा के पास गया । सिंह को निःशस्त्र देखकर, त्रिपृष्ठ भो रथ से उतरा और शस्त्रास्त्र का त्याग कर सिंह की तरफ चला । सिंह के आक्रमण करते ही त्रिपृष्ठ ने उसके मुख में हाथ डालकर उसके मुख को जीर्णशोर्ण वस्त्र को तरह फाड़ डाला । सिंह पृथ्वी पर गिर पड़ा । किन्तु, उसके प्राण नहीं निकले थे, तड़फड़ा रहा था ।
उस समय सारथि सिंह के पास आया और उसने शेर को सम्बोधित करते हुए स्नेहपूरित शब्दों में कहा
हे वनराज ! ' किसी काले माथे वाले पामर मनुष्य के हाथों मेरी कुमौत हो रही है । मैं इसका बाल भी बांका न कर सका । इसने मेरे बल पराक्रम का मिट्टी में मिला दिया है ।" कुछ ऐसे ही विचारों के कारण तुम्हारे प्राण नहीं निकल रहे हैं, ऐसा दिखाई दे रहा है । किन्तु, वनराज ! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारा वध करने वाला कोई सामान्य मानव नहीं है। तुम केसरी सिंह हो तो वह पुरुष सिंह - पुरुषों में सिंह के समान पराक्रमी वीर मनुष्य है । तुम्हारी मृत्यु ऐसे ही पुरुषसिंह के हाथों से हुई है । समान बल पराक्रम वाले के हाथ से मौत हो तो यह शोक करने जैसी घटना नहीं है । तुम अपने चित्त को शान्त करो और घायल शरीर का त्याग कर परलोक की ओर प्रयाण करो । और फिर दयाल सारथि ने भगवान के नाम का स्मरण करवाया ।
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सारथि की स्नेहपूर्ण मधुर वाणी सुनकर सिंह सदा के
लिये शान्त हो गया
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