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गौतम रास : परिशीलन
इसी वार्तालाप के मध्य स्कन्दक समवसरण के द्वार पर पहुंच गया । उसे प्राता देखकर, गौतम शीघ्र ही अपने आसन से उठकर सन्मुख गये और "भले पधारे' कहकर स्वागत किया तथा पूछा कि आप अपने सन्देहों का निवारण करने यहाँ पधारे हैं।
स्कन्दक पाश्चर्य चकित हो गया और उसने पूछा- हे गौतम ! मेरे मानसिक रहस्यों को आप कैसे जान गये ?
गौतम-सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान महावीर के कथन से जान पाया हूँ।
तदनन्तर भगवान महावीर ने उक्त चारों प्रश्नों का समाधान द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के आधार से करते हुए बतलाया कि, लोक, जीव, सिद्ध शिला और सिद्ध सान्त भी हैं
और अनन्त भी । पांचवें प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि बाल-मरण से जीव संसार बढ़ाता है और पण्डित मरण से संसार घटाता है।
संशयच्छिन्न होने पर स्कन्दक परिव्राजक भगवान का शिष्य बना । गुणरत्नतप और भिक्षु की १२ प्रतिमाएँ वहन की । अन्त में संलेखना पूर्वक शरीर त्याग कर १२वें देवलोक में गया और वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर, दीक्षा लेकर, केवली बनकर मोक्ष जाएगा।
तीर्थ के अधिपति / संचालक होते हुए भी सन्मुख जाकर एक अन्य धर्मी परिव्राजक का "भले पधारो" कहकर स्वागत करना गौतम स्वामी की सरलता, उदारता और विनम्रता का परिचायक है।
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