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गणधर गौतम : परिशीलन
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२. अचेलक और विशिष्ट चेलक धर्म के अन्तर का
कारण । ३. शत्रुनों पर विजय के सम्बन्ध में । ४. पाशबन्धों को तोड़ने के सम्बन्ध में । ५. तृष्णा रूपी लता को उखाड़ने के सम्बन्ध में । ६. कषायाग्नि बुझाने के सम्बन्ध में । ७. मनोनिग्रह के विषय में । ८ कुपथ-सत्पथ के विषय में । ६. धर्मरूपी महाद्वीप के सम्बन्ध में । १०. महासमुद्र को नौका से पार करने के विषय में । १ . अन्धकाराच्छन्न लोक में प्रकाश करने वाले के
सम्बन्ध में । १२. क्षेम-शिव और अनाबाध के विषय में ।
इन बारह प्रश्नों में प्रथम और द्वितीय प्रश्न ही मुख्यतः पार्थक्य के बोधक थे। केशी स्वामी सहृदय मानस वाले, समयज्ञ एवं मनस्वी मुनि थे । गौतम के मुख से प्रज्ञा-समीक्षण पूर्वक तर्क-संगत समाधान प्राप्त होते ही, संशय छिन्न होते ही निच्छल हृदय पूर्वक घोर पराक्रमी केशी श्रमण “हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । आप संशयातीत और सर्वश्रुत-महोदधि हो' कहते हुए दीक्षा-पर्याय में बड़े होते हुए भी नत-मस्तक हो जाते हैं । विनम्र भाव पूर्वक, महत्वशाली वैशिष्ट्यपूर्ण समयोचित निर्णय लेकर, अपनी परम्परा का भगवान् महावीर की परम्परा में विलीनीकरण कर देते हैं । ___दोनों महापुरुषों ने परम्परा ज्येष्ठता और परम्परा श्रेष्ठता में न उलझकर, साधना को ही प्रात्म भूमिका पर
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