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________________ गौतम रास : परिशीलन व्रतों का पालन करते हुए ग्यारह प्रतिमाएँ भी वहन की थीं । जीवन के अन्तिम समय में उसने आजीवन अनशन ग्रहण कर रखा था । उस स्थिति में गौतम उनसे मिलने गए। आनन्द ने श्रद्धा-भक्ति पूर्वक नमन किया और पूछा - प्रभो ! क्या गृहवास में रहते हुए गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है ? गौतम - हो सकता है | २८ 1 आनन्द – भगवन् ! मुझे भी अवधिज्ञान हुआ है । मैं पूर्व, पश्चिम, दक्षिण दिशाओं में पांच सौ पांच सौ योजन तक लवण समुद्र का क्षेत्र, उत्तर में हिमवान पर्वत, ऊर्ध्व दिशा में सौधर्म कल्प और अधो दिशा में प्रथम नरक भूमि तक का क्षेत्र देखता हूँ । गौतम - गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है, किन्तु इतना विशाल नहीं । तुम्हारा कथन भ्रान्तियुक्त एवं असत्य है । प्रवृत्ति की आलोचना / प्रायश्चित्त करो । अतः प्रसत्भाषण आनन्द – भगवन् ! क्या सत्य कथन करने पर प्रायश्चित्त ग्रहण करना पड़ता है ? गौतम -- नहीं । आनन्द --तो, भगवन् ! सत्य भाषण पर आलोचना का निर्देश करने वाले प्राप हो प्रायश्चित करें । आनन्द का उक्त कथन सुनकर गोतम असमंजस में पड़ गये । स्वयं के ज्ञान का उपयोग किये बिना ही त्वरा से प्रभ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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