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________________ गणधर गौतम : परिशीलन प्रश्न छोटा हो या मोटा, सरल हो या कठिन, इस लोक सम्बन्धी हो या परलोक सम्बन्धी, वर्तमान-कालीन हो या भूत-भविष्यकाल से सम्बन्धित, दूसरे से सम्बन्धित हो या स्वयं से सम्बन्धित, एक-एक के सम्बन्ध में भगवान के श्रीमुख से समाधान प्राप्त करने में ही गौतम आनन्द का अनुभव करते थे । वस्तुतः इन प्रश्नों के पीछे एक रहस्य भी छिपा हुआ है । ज्ञानी गौतम को प्रश्न करने या समाधान प्राप्त करने की तनिक भी आवश्यकता नहीं थी। वे तो प्रश्न इसलिये करते थे कि इस प्रकार की जिज्ञासाएँ अनेकों के मानस में होती हैं किन्तु प्रत्येक श्रोता प्रश्न पूछ भी नहीं पाता या प्रश्न करने का उस में सामर्थ्य नहीं होता। इसीलिए गौतम अपने माध्यम से श्रोतागणों के मन:स्थित शंकाओं का समाधान करने के लिए ही प्रश्नोत्तरों की परिपाटी चलाते थे, ऐसी मेरी मान्यता है। विद्यमान आगमों में चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि की रचना तो गौतम के प्रश्नों पर ही आधारित है। विशालकाय पंचम अंग व्याख्या-प्रज्ञप्ति (प्रसिद्ध नाम भगवती सूत्र) जिसमें ३६००० प्रश्न संकलित हैं उनमें से कुछ प्रश्नों को छोड़कर शेष सारे प्रश्न गौतम-कृत ही हैं । गौतम के प्रश्न, चर्चा एवं संवादों का विवरण इतना विस्तृत है कि उसका वर्गीकरण करना भी सरल नहीं है । भगवती, औपपातिक, विपाक, राज-प्रश्नीय, प्रज्ञापना आदि में विविध विषयक इतने प्रश्न हैं कि इनके वर्गीकरण के साथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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