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गणधर गौतम : परिशीलन
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जानता ? सूर्य की पहचान किसे नहीं होती ? मेरे अगाध वैदुष्य की धाक सारे देश में अमिट रूप से छाई हुई है, खैर ।
सन्देह-निवारण-मेरे मन में प्रारम्भ से ही यह संशय शल्य की तरह रहा है कि 'पांच भूतों का समूह ही जीव है अथवा चेतना शक्ति सम्पन्न जीव तत्त्व कोई अन्य है ।' मैं अनेक शास्त्रों का अध्येता हूँ, फिर भी इस विषय में प्रामाणिक निर्णय पर नहीं पहुँच पाया हूँ। यदि मेरे इस संशय का ये निवारण कर दें तो मैं इन्हें सर्वज्ञ मान लूंगा और सर्वदा के लिए इनको अपना लूंगा।
अतिशय ज्ञानी महावीर ने इन्द्रभूति के मनोगत भावों को समझकर तत्काल ही कहा ---
हे गौतम ! तुम्हें यह संदेह है कि जीव है या नहीं ? यह तुम्हारा संशय वेद बृहदारण्य उपनिषद् की श्रुति"विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेम्यः समुत्थाय तान्येवानु विनश्यति, न च प्रेत्य संज्ञास्ति--' पर आधारित है । अर्थात् इन भूतों से विज्ञानघन समुत्थित होता है और भूतों के नष्ट हो जाने पर वह भी नष्ट हो जाता है । परलोक जैसी कोई चीज नहीं है ।
महावीर ने पुनः स्पष्ट करते हुए कहा- इस श्र तिपद का वास्तविक अर्थ न समझने के कारण ही तुम्हें यह भ्रान्ति हुई है। इसका वस्तुतः अर्थ यह है कि प्रात्मा में प्रति समय नई-नई ज्ञान-पर्यायों की उत्पत्ति होतो है और पूर्व की पर्यायें विलोन हो जाती हैं । जैसे घट का चिन्तन करने पर चेतना में
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