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गौतम रास : परिशीलन
पर-घर वसतां कां करिज्जइ, कांइ
देस - देसन्तर
भमिज्जइ,
कवण
काजि प्रयास
करउ ।
प्रह उठी गोयम समरिज्जइ,
काज समग्गल ततखिण सिज्जइ, नव निधि विलसइ तिहं घरि ए ॥ ४४ ॥
हे उपासको ! आप पर-घर में निवास कर अर्थात् दूसरे की नौकरी कर क्या प्राप्त करोगे ? अर्थार्जन हेतु देश-विदेश क्यों भ्रमण करते हो ? कार्यसिद्धि के लिये क्यों प्रयास करते हो ? हे आराधको ! प्राप तो उषाकाल में उठकर गौतम स्वामी का स्मरण करो, जिससे आपके समस्त कार्य-कलाप तत्काल ही सिद्ध होंगे और नवों निधान आपके घर में विलास / वास करेंगे ||४४ ॥
अन्तिम के तीन पद्यों में कवि रचना संवत् का निर्देश कर, नाम का माहात्म्य बतलाते हुए इस रास का उपसंहार करते हुए कहता है :
बारोत्तर वरसई,
चउदह- सय गोयम गणहर केवल दिवस,
उपगार- परउ
कियो कवित आदिहिं मंगल ए पभणीजइ, परव महोच्छव पहिलउ दीजइ, रिद्धि वृद्धि कल्लारण करउ ||४५॥
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