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________________ गौतम रास : परिशीलन जिसने भी अनन्तलब्धिधारक गणधर गौतम स्वामी के दर्शन कर लिये, उनके निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण कर लिया, निरन्तर प्रतिक्षण उनका स्मरण करता रहा उसके लिये मानो चिन्तामणि रत्न हस्तगत हो गया, कल्पवृक्ष ने समग्र मनोवांछाओं को पूर्ण कर दिया, कामघट अधीनस्थ हो गया, अष्ट महासिद्धियों ने उसके घर में निवास कर लिया ||४२ || परणवक्खर पहिलउ पमणिज्जइ, माया बीजउ श्रवरण सुणिज्जइ, श्रीमति सोभा संभवइ ए । नमिज्जइ, थुणिज्जइ, गोयम नमउ ए ॥ ४३ ॥ देवह धुरि अरिहंत विजयपहु उवज्झाय इण मन्त्रइ इस पद्य में गौतम स्वामी के नामगर्भित मन्त्र का अनुष्ठान करने का प्रतिपादन करते हुए कवि अपना नाम भी निर्दिष्ट कर रहा है : Jain Educationa International १३१ प्रणवाक्षर "ओम्' कहलाता है; मायाबीजाक्षर "ही" माना जाता है, लक्ष्मी का बीजाक्षर "श्री" है; देवाधिदेव अर्हन्तों का वाचक बीजाक्षर "अहं" है । इन चार बीजाक्षरों के बाद गौतम स्वामी का नाम और अन्त में " नमः" का योजन करो। इस रास के प्रणेता उपाध्याय पदधारक विनयप्रभ कहते हैं कि हे भव्यजनो ! आप लोग “ॐ ह्रीँ श्रीँ अहं श्री गौतमस्वामिने नमः " - नामक बीजाक्षर गर्भित मन्त्र का अनुष्ठान किया करो ॥४३॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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