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________________ ૧૧૨ गौतम रास : परिशीलन जिस प्रकार सूर्य अपनी तेजस्वी किरणों से जगत को आलोकित करता है उसी प्रकार विश्व को उद्योतित करने वाले जिनेश्वर महावीर स्वामी उस समवसरण में देव-निर्मित सिंहासन पर विराजमान हुए, उस समय देवों ने जय-जयकार किया ।।१६।। पद्यांक ७ के समान यहाँ भी चारुसेना रड्डा नामक वस्तु छन्द है। पद्यांक १७ से २१ तक प्रागे के ५ पद्यों में कवि वर्णन करता है कि किस प्रकार इन्द्रभूति दर्प में आकर भगवान् से शास्त्रार्थ करने जाता है। प्रभ का अतिशय देखकर एवं मन में स्थित शंकाओं का समाधान प्राप्त कर विभ का शिष्यत्व स्वीकार करता है और स्वामी अपने तीर्थ की स्थापना करते हैं ।। १६ ॥ तउ चढियउ घरण माण गजे, इंदभूइ भूदेव तउ, हुंकारउ करी संचरिय, कवणसु जिणवर देव तउ । जोजन भूमी समवसरण पेखवि प्रथमारंभ तउ, दह दिसि देखइ विबुध वध, आवंती सुररंभ तउ ॥१७॥ ब्राह्मण देवता इन्द्रभूति तब अत्यन्त अभिमान रूपी हाथी पर चढ़कर जोश से हुंकार करते, गरजते हुए "कौनसा जिनेश्वर देव है" देखने/पराजित करने हेतु शिष्य-समुदाय से परिवृत होकर चले । ज्यों ही वे आगे बढ़े तो सर्वप्रथम उन्होंने एक योजन भूमि में देव-निर्मित समवसरण देखा और देखा कि दसों दिशाओं से देव और देवांगनाएँ प्रवर्धमान भावों से समवसरण में पहुंच रहे हैं ।।१७।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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