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________________ गौतम रास : परिशीलन भारतीय समाज में जो आद्य स्थान अनिष्टहारी मंगलकारी गणपति का है, जैन परम्परा में वही स्थान गौतम स्वामी का है। वे अनन्तलब्धि सम्पन्न एवं कल्याण-स्वरूप हैं, सौभाग्य निधि एवं गुणनिधान हैं, उनका पावन स्मरण मनोकामनाओं का कल्पतरु और महासिद्धियों का निवास है। अतः कवि विनयप्रभ ने बीजाक्षर गभित गौतम स्वामी के नमन का बीजाक्षर गभित मंत्र प्रस्तुत करते हुए उसके अनुष्ठान का निर्देश किया है। वह मंत्र है-“ॐ ह्रीं श्री अहं श्री गौतमस्वामिने नमः ।" अतः स्पष्ट है कि जैन श्रावकों के लिए गौतम स्वामी का चरित्र-गायन एवं उनके पावन नाम के स्मरण अनुष्ठान का निर्देश ही उपाध्याय विनयप्रभ की इस रचना का प्रमुख प्रतिपाद्य है। रचना-विधान-प्रथम छन्द में कवि ने जिनेश्वर महावीर को नमन करते हुए ग्रन्थ का नाम निर्देश किया है तथा भव्यजनों को इस "गोयम गुरु रासउ" के पठन द्वारा गुण-गण ग्रहण की ओर अभिप्रेरित किया है । इसके बाद कथानक का क्रम प्रारम्भ होता है । कवि पहले २ से ६ पद्यों तक वर्णन करता है फिर सातवें पद्य में पूर्वोक्त पाँच पद्यों में वर्णित कथा को सार रूप में दोहराता है । इसी प्रकार पद्य संख्या ८ से १५ तक वणित कथा को १६वें पद्य में सार रूप में प्रस्तुत करता है । यही क्रम २२वें, ३१वें तथा ३७व पद्य में दोहराया गया है । कथा पद्यानुपद्य आगे बढ़ती है । वणित कथा की सार रूप में पुनरावृत्ति कवि का अपना प्रयोग है, इसका निर्वाह अन्त तक सुचारु रूपेण हो पाया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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