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गौतम रास : साहित्यिक पर्यालोचन
जैन परम्परा में उनका उसी प्रकार आद्य स्थान है जिस प्रकार देवों में गणपति का माना जाता है। उनके नाम का स्मरण पुण्यदायक है, कामनाओं को पूर्ण करने वाला तथा सिद्धि प्रदायक है । अतः उपाध्याय विनयप्रभ ने उन के नाम के बीजाक्षर गभित मंत्र का पारायण करते रहने का परामर्श दिया है। रास-काव्य की रचना तिथि तथा गौतम स्वामी के केवलज्ञान दिवस पर गौतम गुरु की उपासना से मंगल सिद्धि की कामना के साथ काव्य की समाप्ति होती है।
प्रमुख प्रतिपाद्य-उक्त कथानक के माध्यम से उपाध्याय विनयप्रभ का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है-गौतम की जीवनगाथा का काव्य-गायन तथा उनके नाम-माहात्म्य का प्रतिपादन । प्रथम पद्य में ही कवि का कथन है कि हे भव्यजन ! मन, तन और वचन से एकाग्र होकर इस “गोयम गुरु रास" को सुनो, जिससे आपका शरीर रूपी घर गुण-गण से विभूषित हो जाय
मण तणु वयण एकंत करिवि निसुणहु भो भविया । जिम निवसइ तुमि देह-गेह गुण-गण गहगहिया ।।
इसके बाद याज्ञिक ब्राह्मण इन्द्रभूति के अभिमान, महावीर प्रभु से दीक्षा ग्रहण, गौतम गणधर बनकर क्रमशः उनके कैवल्य प्राप्त करने तक की कथा २ से ३७ पद्यों तक वणित हुई है। तदनन्तर सात पद्यों में गौतम स्वामी के अतिशय माहात्म्य का काव्यात्मक वर्णन है तथा अन्तिम तीन पद्यों में गौतमरास की रचना-तिथि नाम-माहात्म्य तथा रासपठन के महत्व एवं विधि का निर्देश है।
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