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फुटकर साहित्य:
महोपाध्याय समयसुन्दर
कर्मछत्तीस६४, पुण्य छत्तीसी६५, सन्तोष छत्तीसी६६, आलोयणा छत्तीसी६७ । स्तोत्र, स्तव, स्वाध्याय, गीत, बेलि, भास आदि ।
सैद्धान्तिक - ज्ञान
कवि के रचित विशेषशतक, विसंवादशतक और विशेष संग्रह आदि का आलोडन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने अपने अनुपमेय श्रागमिक ज्ञान का निचोड़ इन ग्रन्थों में रखकर जो जैन - साहित्य की अनिर्वचनीय सेवा की है वह सचमुच में पीढ़ियों तक चिरस्मरणीय रहेगी। क्योंकि, श्रागमसाहित्य में जो स्थल-स्थल पर पूर्वापरविरोधिनी और तर्कविरोधी वक्तव्यों का उल्लेख है, जिससे आगम साहित्य; पर एक बहुत बड़ा धब्बा सा लगता है उन लगभग ३५० विरोधी वक्तव्यों का आगमिक-प्रमाणों द्वारा समाधान करते हुये जिस प्रकार सामञ्जस्य स्थापित किया है; वह हर एक के लिये साध्य नहीं । इस प्रकार का सामञ्जस्य बहुश्रुतज्ञ और प्रवर गीतार्थ ही कर सकता है । वही कार्य कवि ने करके अपनी 'महोपाध्याय ' ६४ सकलचन्द सद्गुरु सुपसाये, सोलह सइ अड़सहजी ।
करम छत्तीसीए मई कीधी, माहतणी सुदी छट्टुजी | क० |३५| ६५ संवत निधि दरसण रस ससिहर, सिधपुर नयर मझारजी । शांतिनाथ सुप्रसादे कीधी, पुण्य छत्तीसी सारजी || १० ||३५|| ६६ संवत सोल चउरासी वरसइ, सर मांहे रह्या चउमास जी । अस सोभाग थय जग मांहे, सहु दीधी साबासजी । सा०|३६| ६७ संवत सोल अट्टाए, अहमदपुर मांहि । सयमसुन्दर कहइ मई करी, आलोयण उच्छाहि || पा० || ३६ ||
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