SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर और ज्ञान-वृद्ध-गीतार्थ की योग्यता समाज के सन्मुख रखकर आगम-साहित्य की प्रामाणिकता और विशदता की रक्षा की है। कवि का आगमिक ज्ञान अगाध था; जिसकी विशदता का प्रास्वादन करने के लिये हमें उपर्युक्त ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिये । कषि के जैन-साहित्य-ज्ञान की परिधि का अनुमान करने के लिये गाथा सहस्री, विशेषशतक और समाचारी शतक में उद्धृत ग्रन्थों की अधोलिखित तालिका से उसकी विपुल ज्ञान राशि का और अद्भुत स्मरण शक्ति का 'स्केच' हमारे सामने आ जायगा। आगम- आचारांग सूत्र नियुक्ति-चूर्णि- का सह, सूत्र कृतांग नियुक्ति-चूर्णि-टीका सह, अभयदेवीया टीका सह स्थानांग सूत्र. कलिकाल सर्वज्ञ के गुरु देवचन्द्रसूरि कृत स्थानांग टीका सह ( देखिये, स० श० पृ. ४३], समवायांग टीका सह, भगवती सूत्र लघु एवं बृहट्टीका सह, ज्ञाताधर्मकथा-उपासकदशाप्रश्नव्याकरण - विपाकसूत्र-औपपातिक सूत्र-राजप्रश्नीय-प्रज्ञापना-जीवाभिगम-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका सह, सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति-टीका सह, चन्द्रप्रज्ञप्तिनिरयावलिका टीका सह, ज्योतिषकरण्डक प्रकीर्ण टीका सह, गच्छाचार प्रकीर्ण, भक्त प्रकीर्ण, संस्ता. रक प्रकीर्ण, मरण समाधि प्रकीर्ण, तीर्थोद्गालिक प्रकीर्ण, तीर्थोद्धार प्रकीर्ण*, विवाह चूलिका । बृहत्कल्पसूत्र भाष्य-टीका सह, व्यवहार सूत्र भाष्य टीका सह, निशीथ भाष्य चूर्णि सह, महा* देखिये, स० श० पृ० ५३. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy