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महोपाध्याय समयसुन्दर
( ५६ )
चौबीसी-बीसी:- चौवीसी५६, ऐरषतक्षेत्रस्थ चौवीसी६०, विहर
मानवीसी६१ । बत्तीसी-साहित्य:- सत्यासीया दुष्काल वर्णन छचीसी, प्रस्ताव
सवैया छत्तीसी६२, क्षमा छत्तीसी६३, ५८ “द्रुपदीनी ए चउपह, मह वृद्ध पणइ परिण कीधी रे ।
शिष्य तणइ आग्रह करी, मई लाभ ऊपरि मति दीधी रे ।२।
अमदाबाद नगर मांहे, संवत सतरसइ वरषे रे । माह मास थइ चउपई, हुसी माणस ने हरषे रे । p०५ । वाचक हरषनन्दन वली, हरषकुशल इंसानिधि कीधइ रे।
लिखण सोमण सहाय थकी, तिण तुरत पूरी करि दीधी रे।दू.६। ५६ “वसु इन्द्री रे रस रजनीकर संवच्छरें रे,
(१६५६) हारे अमदावाद मझार । विजयादशमी दिने रे गुण गाया रे,
तीर्थकरना शुभ मने रे । ती०२।" ६० "संवत् सोल सताणुया वरसे, जिनसागर सुपसाया ।
हाथी साह तणइ आग्रह कहइ, समयसुन्दर उवझाय रे । ऐ० २।" "संवत सोलह सत्राणु, माइ वहि नवमी वखाणु।
अहमदावाद मझारि, श्रीखरतरगच्छ सार । वी०५।" ६२ संवत सोलनेउया वाणे, श्री खंभाइत नयर मझारि;
कीया सवाया ख्याल विनोदई, मुख मंडण श्रवणे सुखकारि । ६३ नगर मांहि नागोर नगीनउ, जिहां जिनवर प्रासादजी।
श्रावक लोग वसइ अति सुखिया, धर्म तणइ परसाद जी। प्रा० । ३४ ।
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