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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
ढाल-बीजी, बीसामा रो गीतनी ढाल. हिव भवियण तुम्हें सांभलउ जी, गुरु नई नामी सीस । सामाइक पोसा तणा जी, दृषण टालउ वत्रीस ।। बत्रीस दूषण बारह तनुना, मारि बइसइ पालठी । अति अथिर आसण दिष्टि चंचल, करइ काया एकठी।। करइ काम सावध ल्यइ उटिंगण आलस करडक मोड ए। खणइ खाजि वीसामण करावइ उंघ करइ मल छोड ए॥८॥ वचन तणा दूषण दसे जी, जाणउ एणि प्रकार । कुवचन बोलइ लोकनइ जी, घइ दोष सहसातकार ॥ सहसातकार कलंक धइ वलि आप छंदइ बोल ए । संखेप सूत्र कहइ अालावउ करइ कलह निटोल ए॥ विकथा करइ उपहास मांडइ न राखइ पद संपदा । जा प्रावि बठि तुं ऊठि एहवी कहइ भाषा सरवदा ॥६॥ दस दूषण हिव मन तणा जी, सांभलिज्यो चित एक । नून अधिक न लहइ क्रिया जी, मन मांहि नहीं य विवेक ।। सुविवेक जस धन लाभ वांछइ करइ पोसउ बीहतउ । पोसउ करीनइ करइ नियाणउ पुत्र प्रमुख नई ईह तउ ।। अभिमान रीसइ करई पोसउ धरइ फल संदेह । वलि विनय भगति लगार न करइ मन दूषण दस एह ॥१०॥ काया वचन नइ मन तणा जी, दूषण एह बत्रीस । जे टालई दोष तेहनउ जी, पोसउ विसवो बीस ॥
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