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पौषध-विधि गीतम्
( ५६७ )
वीस विसा बोलइ नहीं वलि उघाडइ मुखि आंपरइ । छूटी ग्रही सुं बात न करइ पांच दृषण परिहरइ ।। उपवास करिनइ दिवस पोसउ कीघउ नहि निस करइ । एक पक्ष छोडइ नहीं उत्तराध्यन अक्षर अनुसरइ ॥११॥ चउपरवी पोसउ काउ जी, सूत्र सिद्धांत मझारि । हरिभद्र सूरि विवरउ कीयौजी, बावीस सहस्त्री सार ॥ बावीस सहस्री सार बोले दिवस प्रति करिव्यौ नही । पोसहउ अथिति संविभाग बेऊ परव दिन करि वासही ।। उद्दिष्ट सबद तणउ अरथ हिव, सीलांगा-च्यारिज करइ। पोसउ पजूसण परव कल्याणक तिथि पणि ओदरइ ॥१२॥ उपधाने पोसउ काउ जी, सूत्र निसीथ प्रमाणि । त्रिविहार चउविहार जीमणइ जी, एक विगय घृतजाणि ॥ घृत जाण आचरणा परंपर पूरवाचारिज कही । भगवंत भाष्यउ सत्य तेहिज खांचा-ताण करिवी नहीं। त्रिविहार पोसउ च्यार पहुरी पुण पहुर सीमा करी । ए त्रिएह गछ तणी आचरणा अविधि छइ पणि आदरी॥१३॥ ढाल त्रीजी-(सोभागी सुन्दर भाव वडउ संसारि, एहनी ढाल ) सांझ समइ थंडिला करइ रे, बारे बाहिर मांहि बार। इरियावहि वलि पडिकमी रे, जइ तिहुण कहइ सार ।१४। सोभागी श्रावक साचउ पोसउ एह, एतउ भगवंत भाख्यउ तेह । त्रिकरण सुद्ध करउ तुम्हे रे, जिम पामउ भव छेह ॥१॥सो.।
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