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________________ पौषध-विधि गीतम् पाय नमई सगला साधु केरा, सुराई सुगुरु बखाण ए । ध्यान करइ अथवा गुणइ, प्रकरण कहइ अरथ सुजाण ए । पण पहुर पडिलेहण करीन, मातरा पडिलेह ए । G जल घड़ा लोटी बाटका, पडिलेहवा वलि तेह ए ॥ ५ ॥ गुरु सांथह रे, चैत्य प्रवाडि करइ खरी । देव वदह रे, शक्र स्तव पांचे करी ॥ उपासिरइ रे, यावी इरिया पडी कमी । आगमण रे, आलोय नीचउ नमी || atar नमी बस बइसइ, मिळामि दुक्कड देहि नई | त्रिविहार हुइ तउ पाणी पारइ, मुहपत्ती पडिलेह नई ॥ नउकार गुणतां पाठ भगतां, पहुर त्रीजर दिवस रह । पडिकमी इरिया वही पहिली, बेउ पडिलेहण करइ || ६ || । धमसाला रे, पुंजी इरिया पकिमी । थे पालउ रे, थापना पडिलेही समी || मुहपत्ती रे, पडिलेही उभउ थई । करइ गुरु मुखि रे, पच्चखाण मनि गह गई || । ( ५६५ ) Jain Educationa International गह गई आठे दे खमास, वस्त्र सगला आपणा । पडिलेहिवा मातरा ति परि, चलवला पुंजण तणा ॥ देहनी चिंता काजि जातां, कहइ भगवन आवस्सही । मारगई इरिया समिति सोझ, आता कहै निस्सही ॥ ७ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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