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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
पौषध-विधि गीतम् जेसलमेरु नगर भलउ, जिहां श्री पास जिणंद । प्रह उठी नइ प्रणमतां, आपइ परमाणंद ॥१॥ तासु चरण प्रणमी करो, पोषध विधि विस्तार । पभणं श्रावक हित भणी, आगम नइ अनुसारि ॥२॥ पोसउ पोसउ सहु कहइ, पोसउ करइ सहु कोइ ।। पण पोसा विधि सांभलउ, जिम निस्तारउ होइ ॥३॥ ढाल पहिजी-प्रभु प्रणमुरे पास जिणेसर थंभणट, एहनी ढाल. पहिलइ दिन रे, सांझ समई उपग्रहण सहु। पडिलेही रे, रुड़ी परि राखइ बहु ।। पहिली रातई रे, साधु समीति आवी करी । राइ प्रालित रे, प्रथम करइ मन संवरी ॥ संवरी श्रावक करइ पोसउ, आठ पुहरि गुरु मुखइ । उचरइ दंडक त्रिबह वेला, सामाइक पणि तिणि रुखई ।। पछई करइ पडिकमणउ आंतरणी, साधु बांदइंता गिणइ । कमभूमि अठावयंमि उसभो मंगलीक कुलक भणइ ॥४॥ पडिलेहण रे, अंग उही सगली करई। उपासरउ रे, पुंजी काजउ ऊधरइ । इरियावही रे, थापनो आगई पडिकमई । करि सज्झाय रे, साधु सहुना पाय नमइ ॥
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